"बहादुर शाह ज़फर "
"ना
किसी की आंख का नूर हूँ , न
किसी के दिल का करार हूँ , जो
किसी के काम ना आ सके , मैं
वो एक मुश्त -ए -गुबार हूँ "
आखिर क्या वजह थी
इनके लिखे प्रत्येक शब्द में लिपटे दर्द और पीड़ा की ? चलिए जानने की कोशिश करते हैं :-
दिल्ली के तख़्त पर बेठने के बाद मुग़ल सम्राट ज़फर के पास अंग्रेज विद्रोही सेना के कुछ अफसर आ कर उन्हें अपना सेनानायक बनने का आग्रह करते हैं , बहादुर शाह उनका जोश देख कर उनका प्रस्ताव मान लेते हैं
इनके दुःख की एक बात तो इस दृश्य से ही साफ़ हो जाती है की बादशाह को अपने राजकोष में धन का अभाव बहुत खलता था , वो खुद ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा दी जा रही 'पेंशन' पर आश्रित थे !
वृद्ध बादशाह हर पल खुदा से अपने मुल्क की आजादी के लिए दुआ करते, बादशाह सलामत एक नेक दिल के इंसान थे , बादशाह नें गो हत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया और दोषी के हाथ काटने का प्रावधान भी रखा , वो सभी धर्मों का सत्कार करते थे और हिन्दू त्योहारों को भी पुरे हर्शोउलास के साथ मानते थे , इतिहास में लिखा है की वो होली मनाने के लिए महल के तलाब को खास तौर से सात कुओं के पानी से भर लेते थे और फिर अपनी चारों बेगमों और अन्य गणमान्य व्यक्तियों संग होली के रंग से सरोबार हो जाते , रामलीला को वो बहुत चाव से देखते थे ! तभी तो विद्रोही सेना नें अपने नेता के रूप में बहादुर शाह ज़फर को चुना , क्योंकि उन्हें यकीं था की वृद्ध बादशाह सभी धर्मो के लोगों को एक सूत्र में पिरो कर रखेंगे
सम्राट नें चार शादियाँ की : बेगम अशरफ महल , बेगम अख्तर महल , बेगम जीनत महल और बेगम ताज महल ,इन सभी में से बेगम जीनत महल ही अपार सोन्दर्य की मल्लिका थी ! यह जीनत महल की खूबसूरती ही थी जिसने बादशाह को रोमांटिक गजलें लिखने के लिए मजबूर कर दिया
"ले गया लुट के कौन मेरा सब्रो-ओ-करार , बेकरारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो ना थी !!"
बेगम जीनत महल की खूबसूरती को चित्रकार नें बखूबी दर्शाया है !
केवल बेगम जीनत महल ही राजकीय कामों में भी दिलचस्पी रखती थी, और बहादुर शाह भी अपना ज्यादा वक्त जीनत महल के साथ ही बिताते थे !
बादशाह का समधी मिर्जा इलाही बख्श एक धूर्त इंसान था , वो दरबार की सारी
खबरें अंग्रेजों तक पहुंचाता था , फिरंगी अब बूढ़े बादशाह को गद्दी से हटाना
चाहते थे , इसी मकसद से उन्होंने विश्वासघाती मिर्जा इलाही बख्श को बेगम
के पास भेजा , लेकिन जीनत महल एक दूरदर्शी महिला थी और उसने इस बात को एक
कान से सुन कर निकाल दिया
बहादुर शाह के नेतृतव में विद्रोह की तैयारी पूरे जोरों पर थी , घरों में ही हथियार बनने शुरू हो चुके थे
अंग्रेजों को मिर्जा इलाही बख्श जैसे चन्द दगाबाजों के माध्यम से इस
विद्रोह की खबर और बहादुर शाह के मंसूबों का पता चल चूका था , अंतत:
फिरंगियों नें दिल्ली पर धावा बोल दिया
बख्त खान के जाने की देर ही थी की इलाही बख्श नें बादशाह को गिरफ्तार करवा
दिया , बहादुर शाह को अपने वफादार बख्त खान की बात ना मानने का दुःख अपने
मरने तक रहा
कुछ इतिहासकारों का मानना है की हुमायूँ के मकबरे में से केप्टन हडसन नें बहादुर शाह ज़फर को अकेले नहीं बल्कि उनके पुत्रों सहित गिरफ्तार किया गया था , जैसा की इस चित्र में दिखलाया गया है
बेगम जीनत महल को भी उनके पुत्र सहित गिरफ्तार कर लिया गया
बादशाह को बेगम सहित लाल किले में क़ैद
कर लिया गया , बहादुर शाह ज़फर पूरी तरह से टूट चुके थे , शायद इससे भी
भयानक मंजर उनका देखना शेष था , जो उनके पीड़ा की सबसे बड़ी वजय बना !
फिरंगियों नें क्रूरता की तमाम हदें
पार करते हुए बूढ़े लाचार बादशाह के समकक्ष उसके सभी पुत्रों के कटे हुए सर
एक थाल में रखकर लाये गए , किसी भी बाप पर क्या बीतेगी जब वो अपने जवान
बेटों के कटे हुए सर देखेगा , बहादुर शाह यह देख कर कराह उठे , अब समझ में आ
रहा है की क्यों बहादुर शाह ज़फर द्वारा लिखित प्रत्येक शब्द में दर्द और
तड़प क्यों है ! यह है बूढ़े बादशाह के दुःख की असल वजह !
शहजादों के सर और धड़ अल्ग अल्ग लटकवा दिए गए , विद्रोह को फिरंगियों नें पूरी तरह से कुचल दिया , और दिल्ली की सडकों पर हर तरफ मौत का तांडव था !
बहादुर शाह को बेगम सहित रंगून में दिल्ली से निर्वासित करके रंगून के कैदखाने में भेज दिया गया
रंगून के कैदखाने में बहादुर शाह के दिल का दर्द सैलाब बन कर उनकी कलम के माध्यम से उनके द्वारा लिखे प्रत्येक रक्तरंजित शब्दों में लिपटता चला गया ,
"लगता नहीं है जी
मेरा उजड़े दयार में किसकी बनी है आलम-ए-नापायेदार में बुलबुल को पासबाँ से
न सैयाद से गिला क़िस्मत में क़ैद लिखी थी फ़स्ल-ए-बहार
में"
अंग्रेजों नें जेल में भी उनके लिखने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था , लेकिन बादशाह जली हुई लकड़ी को ही कलम बना कर दीवारों पर अपना दर्द लिखते गए, इनकी काफी रचनायें नष्ट कर दी गयी, जो बच गयी उनको "कुल्लियात-ऐ- ज़फर " में सुरक्षित कर लिया गया
अंग्रेजों नें जेल में भी उनके लिखने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था , लेकिन बादशाह जली हुई लकड़ी को ही कलम बना कर दीवारों पर अपना दर्द लिखते गए, इनकी काफी रचनायें नष्ट कर दी गयी, जो बच गयी उनको "कुल्लियात-ऐ- ज़फर " में सुरक्षित कर लिया गया
बादशाह की अंतिम इच्छा थी की उनके मृत शारीर को उनके वतन में ही दफनाया जाये , लेकिन बेहद अफ़सोस की बात है की उनकी अंतिम इच्छा को पूरा नहीं किया गया , इसी दुःख का इजहार बहादुर शाह नें ऐसे किया "कितना बदनसीब है ज़फर दफ़न के लिए दो गज जमीन भी ना मिली कुए-यार में !" 1862 में बादशाह नें अपनी अंतिम सांस ली , उन्हें रंगून में ही दफना दिया गया , बादशाह के जाने के 24 वर्षों बाद 1886 में बेगम जीनत महल की भी मौत हो गयी , बेगम को भी बादशाह के पास ही दफनाया गया , आज भी म्यांमार में बहादुर शाह ज़फर की दरगाह है ,दिल्ली में बादशाह के नाम पर "ज़फर मार्ग" और बेगम के नाम पर एक स्कूल भी है
"उम्र-ए-दराज़ माँगके
लाए थे चार दिन..
दो आरज़ू में कट गए, दो इन्तज़ार में..
दिन ज़िन्दगी के
ख़त्म हुए शाम हो गई..
फैला के पाँव सोएँगे कुंज-ए-मज़ार में"
"हमने दुनिया में आके क्या देखा
देखा जो कुछ सो खवाब सा देखा
है तो इंसान ख़ाक का पुतला
लेकिन पानी का बुलबला देखा "
देखा जो कुछ सो खवाब सा देखा
है तो इंसान ख़ाक का पुतला
लेकिन पानी का बुलबला देखा "
बहादुर शाह ज़फर और उनकी बेगम जीनत महल के आखरी वक्त की एकमात्र दुर्लभ तसवीरें
"ना तो मैं किसी का हबीब हूँ
ना तो मैं किसी का रकीब हूँ
जो उजड़ गया वो नसीब हूँ
जो उजड़ गया वो दयार हूँ "
चलते चलते , 'कुल्लियात - ऐ - ज़फर ' से लिया गया एक और मोती , गौर फरमायें :
"इन हसरतों से कह दो
कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में
इक शाख़-ए-गुल पे बैठ के बुलबुल है शादमाँइतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में
काँटे बिछा दिये हैं दिल-ए-लालाज़ार में"
अपने मुल्क को आजाद करवाने के लिए अपना और अपने परिवार का बलिदान देने वाले इस शूरवीर बादशाह को मेरा प्रणाम
विशाल प्रस्तुति
Excellent presentation.
ReplyDeleteBala
awesome just awesome post!!!!! mere paas koi shabd nahi hai bolne ko...
ReplyDeletedil baag baag ho gaya aur dukh se bhar bhi gaya... really there is nothing interesting like knowing ur own country's history...
Vishal Bhai,
ReplyDeleteBahot hi badhiya likha hai aapne. Mano puri bat aankho ke samne fir se jivit ho uthi.
TOI, Mumbai has posted article on Daily reports of Bahadur Shah's trial today from 1857 Archives. Posted a picture of Emperor dated January 27, 1858.
ReplyDelete@ Bala
ReplyDeleteYou are welcome Bala ji. Thanks a lot for liking this post & your encouraging words
@ Dhiraj Kumar Sinha
ReplyDeleteदिल खोल कर की गयी प्रशंसा के लिए बहुत बहुत शुक्रिया सिन्हा साब ! नि:संदेह भारतीय इतिहास दुनिया में श्रेष्ठ है और इसे करीब से जानना और भी रुचिकर है !
@ Vidyadhar
ReplyDeleteविद्याधर भाई , आपको पोस्ट अच्छी लगी , यह जानकर बेहद ख़ुशी हुई , मैं इस पूरी घटना को एक चलचित्र की तरह ही दिखलाना चाहता था , और आपको यह पोस्ट बिलकुल वैसी ही लगी जैसी मैं चाहता था ! एक बार फिर से शुक्रिया
@ Bala
ReplyDeleteBala ji, if you could please post e-paper link of this article of TOI which you have mentioned above as I tried to find it but couldn't
Thanks a lot Vishal bro
ReplyDeleteDear Vishal
ReplyDeleteVery nice presentation . I would love if you post comics on regular basis with such nice presentation . Only reveiw of comics does not help , here we all want at least comics too , only review dos not help , rest is blogger's choice only
बहुत खूब विशाल भाई । इस बार यह देख कर अच्छा लगा कि आपने इंद्रजाल से दीगर कॉमिक्स पर अपनी वसीह निगाह डाली है और क्या खूब डाली है जिसने चित्रभारती कथामाला सीरीज़ की इस मर्मस्पर्शी कॉमिक की खूबियों को कितनी खूबसूरती से हर कोने से फैला कर पाठकों के सामने रखा है जिसे पढ़ कर इस कॉमिक को दोबारा पढ़ने का जी चाहता है । 'आखिरी मुग़ल' यानी बहादुरशाह ज़फर एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1857 के ग़दर में जम कर अंग्रेजो से लोहा लिया । इनपर दूरदर्शन पर एक सीरियल भी आया करता था जिसमे मुख्य भूमिका अशोक कुमार ने निभाई थी ।
ReplyDeleteकॉमिक्स के डाऊनलोड लिंक्स तो और भी सभी कॉमिक ब्लॉग्स पर पोस्ट किये जाते हैं लेकिन कॉमिक्स की विशेषताएं इस तरह और इतनी ख़ूबसूरती से बखान कर लिंक पोस्ट करने का आपका तरीका लाजवाब और अदित्त्य होता हैं जिसका कोई सानी नहीं और जो यह बताता हैं कि आप को कॉमिक्स से किस क़दर का खुलूस और मोहब्बत है । आपकी इस मोहब्बत और इस ख़ुलूस को हज़ारों सलाम ।
Dear Zaheer . I totally agree that Vishal 's presentation is excellent . You would find how many blogs are regularly posting comics . These blogs were created to share comics and books . Wonder how many persons will be interested only in analysis only when every thing is readily available on google at click of mouse Comics sharing is difficult one . If somebody simply puts links , his value does not get reduced . Comics lovers have grown certainly because of comics sharing only .
ReplyDeleteBut at the same time good analysis with nice comics is a very good combination . So many find problem even in sharing scans .
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteVishal,
ReplyDeleteYou can read the article with following link:
http://epaper.timesofindia.com/Default/Scripting/ArticleWin.asp?From=Archive&Source=Page&Skin=TOINEW&BaseHref=TOIM/2013/06/18&PageLabel=11&EntityId=Ar01100&ViewMode=HTML
Aslo u can go to full page of epaper:
http://epaper.timesofindia.com/Default/Client.asp?Daily=TOIM&showST=true&login=default&pub=TOI&Enter=true&Skin=TOINEW&AW=1371614388343
It's on page 11 of TOI.
Bala
जहीर। भाई,
ReplyDeleteकाफी दिनों के बाद लाजवाब प्रस्तुति।लगता है कि कलम ने और रचनात्मकता के घोड़ों ने मिलकर आपकी लेखनी को बढिया छलांग लगाने के लिए प्रेरित किया है।मैंने भी जफर साहब को काफी पढ़ा है,पसंद भी बहुत है,किंतु जब फैज साहब ने कहीं कहा कि वे जफर साहब को शायर ही नहीं मानते हैं तो थोड़ा धक्का लगा था। आज ये सोचकर तसस्ल्ली हो रही कि कोई भी फनकार चाहे कितना ही महान क्यों न हो, हर जगह सही साबित नहीं हो सकता।
आपको पुनः साधुवाद एक अच्छी प्रस्तुति के लिए
Ajay,certainly posting comic links is also a great appreciative job as to scan/post comic requires effort and attitude to share and nowhere i mean to demean the gesture of the bloggers who are sharing comics.I always had liked some description/discussion too along with comic links about the features and quality of comic and that's why i rate high discussion along with links which is totally a subjective choice from which others may differ...and regarding availability of everything at a mouse click i beg to differ because discussion and description of such comics is still not available elsewhere as there are not many persons who intend to toil their time and energy without any 'considerable' gain in return.
ReplyDeleteThanks Parag bhai for the praise but this post has been prepared and posted by our dear friend Vishal ji who deserve all the praise and appreciation for his work.
ReplyDeleteविशालजी,
ReplyDeleteआपको बहुत -बहुत धन्यवाद एक अति उत्तम प्रस्तुति के लिए।
आशा करता हूं कि आगे भी इस तरह की प्रस्तुतियां पढ़ने को मिलती रहेगी।
@ Gaurav Gandher
ReplyDeleteYou are welcome Gaurav Ji
@ Bala
ReplyDeleteThanks a lot Bala ji for TOI link
@ Parag
ReplyDeleteनिसंदेह ! पराग जी , कॉमिक भाई की कलम की तेज धार से निकले लफ्ज बेहद दिलकश होते हैं (दीगर , खुलूस , वसीह , बिलाशुबह :)) और रचनात्मकता के घोड़े अपने आप में ही अतुलनीय और अकल्पनिए हैं ! इनका कॉमिकसी और फ़िल्मी ज्ञान लबालब और ठसाठस है
कृपया आप मुझे यह बताने की कृपालता करें की आपने कहाँ पड़ा की फैज़ जी ज़फर साब को शायर ही नहीं मानते , क्योंकि मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता
Vishalji,
ReplyDeletepls. go thorugh the link
http://manishkmr.blogspot.in/2011/04/when-shabana-azmi-met-faiz-for-first.html
@ Parag
ReplyDeleteThanks a lot Parag ji for this link.
@ Ajay Ji
ReplyDeleteThanks a lot for such appreciating remarks. It has always been a great feeling when a senior most blogger like You come forward with such moral boosting comment. I always wonder how You manage to post various comics consistently for the last 7 or 8 years !
It is really difficult for me to post comics regularly. But I will post occasionally surely.
@ कॉमिक भाई
ReplyDeleteआपने दूरदर्शन पर आते अशोक कुमार अभिनीत 'बहादुर शाह ज़फर' सीरिअल का जिक्र करके यादों की तारों को झुन्झुनाते हुए उस वकत की याद दिला दी जिसे मैं लगभग भूल चूका था ! अब याद आ गया है की हाँ इस सीरियल को मैंने ब्लैक एंड वाइट टीवी की रंगदार स्क्रीन पर देखा जरुर है , लेकिन उस वक्त छोटी उम्र के चलते इसे देखते हुए मन उकता जाता था ! क्या दिन थे वो भी ! आपकी यह खासियत है की आप अपनी तेज धार कलम से पुराणी भूली बिसरी यादों के तार अचानक ही छेड़ देते हो !
लेकिन कॉमिक भाई आप से एक सविनय निवेदन यह है की आप अब तो एक 'जल्वाफिरोज़' कॉमिक पेश कीजिये ! अब तो मुद्दतें हो गयी आपको 'वेताल कथा' सुनाये :(
मैं आपसे दरखास्त करता हूँ की आप 'चोथा पुत्र', 'JUNGLE PATROL' के स्तर वाली एक वेताल कथा जरुर पेश कीजिये !
आशा करता हूँ की आप इस बार निराश नहीं करोगे :)
वेताल कथा के इन्तजार में
विशाल
विशाल भाई चिंता मत कीजिये आपका इंतज़ार ख़त्म होने वाला है क्योंकि इंशाल्लाह अगली पोस्ट एक 'वेताल' पोस्ट ही होगी ।
ReplyDeleteJitana Mehanat aap comics Scan karne mein lagate hain, shayad aapka usase jyada mehanat post karne mein lagata hoga par aisa karke aap us comics ko download karke padhane ko mazboor kar dete hain. bahut hi achchha prayas. thanks
ReplyDeleteकॉमिक भाई , आपने ना केवल इस फरियादी की फ़रियाद ही सुनी बल्कि उसे अंजाम तक भी पहुंचा ! आपका बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDelete@ Rajesh Kumar
ReplyDeleteराजेश जी , आपका कॉमिक वर्ल्ड पर हार्दिक स्वागत है , आपका कहना बिलकुल सही है क्योंकि ऐसी पोस्ट को तैयार करने में वक्त तो जरुर लगता है , लेकिन मेरा मकसद पाठकों को पड़ने के लिए विवश कर देना होता है और आपके विचार सुन कर लगता है की मैं इसमें कामयाब रहा हूँ , आपकी सराहना और हौंसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया :)
विशाल भाई सचमुच पोस्ट काबिले तारीफ है|
ReplyDeleteपोस्ट पढ़ते हुए चलचित्र आँखों के सामने घूमता जाता हैं| और इस पोस्ट को पढ़ कर अच्छा लगा
बेदी साहब , देरी से आपके दिलकश कमेंट का उत्तर दे रहा हूँ , इसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ
ReplyDeleteआपको पोस्ट चलचित्र सी लगी , यह जान कर बहुत ही ख़ुशी हुई :)
Atyant rochak prashtuti... Great work.. keep going...
ReplyDeleteWebsite is comprehensive as well as informative. I have enjoyed the visit. From www.retailobiz.com
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteGreat Tribute
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