सत्तर के दशक में जब डेनिम जींस का भारत आगमन हुआ तो इसकी महिमा पर कई आलेख,कवितायेँ इत्यादि लिखी गईं थी,ऐसे ही एक आलेख से आपका परिचय करवा रहे हैं जो तब की बहुचर्चित पत्रिका 'दीवाना' में प्रकाशित हुआ था.कृपया गौर फरमाइए और जींस की महिमा से परिचित होकर लाभान्वित होइए.
तो दोस्तों कैसी लगी आपको महिमाए-जींस,अगर पसंद आई तो कुछ अलफ़ाज़ हमारे साथ बाँटने में गुरेज़ न करें.
27 comments:
Mazedaar...mahamazedaar...aur total masaaledaar... Jeans ki mahima ka ye bakhaan tha mahaan cartoonist Negi ji dwara...jinko hum Bharat ji ke naam se bhi jaante hain...to kul mila ke total naam bana Bharat Negi sahab ka, an eccentric genius who can talk on any topic and will have some real interesting take on the things :) Share karne ke liye shukriya Zahir bhai:)
TF: Welcome Alok bhai and thanks about information about Negi Sb.
सचमुच जींस की महिमा अपरम्पार है
।
दीवाना के इस टाइप के स्ट्रिप आज भी दिमाग में ताज़ा है . जैसे की..
सवाल यह है.. जवाब हाज़िर है.
मदहोस होश में आ
आदिम युग.
पंच तंत्र.
दीवाना तो विलुप्त हो गयी . 'मेड ' का भारतीय संस्करण दीवाना थी अभी पिछले हफ्ते पहली बार मेड पढ़ी . मुझे लगता है की वक़्त के साथ नयी मेड भी अपनी चमक खो रही है. जहीर भाई किसी इत्तेफाक से purani मेड की एक आध कॉपी है तो पेस्ट करेंगे क्या..?
hi mast hai.... puri magazine post kar deta to aur achha hota....
Prateek Jain: जी हाँ,प्रतीक भाई.जींस देवी की जय हो.
Kuldeep Bhai: कुलदीप भाई दीवाना एकलौती ऐसी पत्रिका थी बच्चो-बूढ़ों सभी का मनोरंजन करती थी,इसका हास्य कठोर होता था.सिलबिल-पिलिपिल,मोटू-पतलू,फ़िल्मी पैरोडी,पंचतंत्र और सामयिक/राजनैतिक घटनाओ पर कटाक्ष इसकी विशेषताएं थीं.
मैड का शायद एक स्पेशल अंक पड़ा हुआ है,ढून्ढ कर निकलता हूँ.
Mohd.Qasim: Don't worry Qasim Bhai,whole magazine will also be posted.
मजा आ गया ज़हीर भाई , ये पत्रिका तो मेरे जनम से भी पूर्व की है कभी सुना नहीं इसके बारे में ...लेकिन ये हमें ७० और ८० के दशक के व्यंग की याद दिलाता है जो बहुत ही निष्कपट एवं सरल हुआ करता था. आज के युग में जब तक दोहरे अर्थ के संवाद न आजाये व्यंग सम्पूर्ण नहीं माना जाता.( शमा चाहता हूँ मेरी हिंदी आप जैसे प्रतिभावान महा पुरुषों जैसी तो नहीं है
फिर भी कोशिश की है.)
वैसे हक तो नहीं बनता लेकिन जहीर भाई आपका छोटा भाई होने के नाते आपसे एक दो छोटी सी शिकायत रखता हूँ अगर आज्ञा हो तो प्रस्तुत करूँ .
Rahul:सबसे पहले तो राहुल भाई इतनी उम्दा हिंदी लिखने के लिए बधाई,कौन कहता है की आप अच्छी हिंदी टाइप नहीं कर सकते?अरे भाई शिकवे-शिकायतों का हक बिलकुल बनता है आपका,बेफिक्र होकर अपनी तमाम शिकायतें पेश कीजिये.
CW- हौंसला बढ़ाने के लिए शुक्रिया बस आपसे प्रेरणा लेकर कुछ कोशिश कर रहा हूँ.शिकायत कहना तो शायद सही न होगा उसे मेरा अनुरोध समझे.हालांकि मैं इस ब्लॉग से कुछ ही समय पहले जुड़ा हूँ लेकिन चूँकि आपका लेखन और प्रस्तुति इतनी मनोरम और चित्ताकर्षक है की मुझसे रहा नहीं गया और मैंने लगभग पिछले सारे ब्लॉग पढ़ डाले .२००८ में आपने टार्विल कॉमिक का मुख्प्रष्ट पोस्ट किया था और सब पाठको से ये वायदा किया था की जल्द ही आप टार्विल श्रृंखला की दोनों कॉमिक जल्द ही प्रस्तुत करेंगे. जहाँ तक मुझे ज्ञात है ये दोनों पुस्तके आपकी भी मन पसंद है लेखन एवं चित्रकला दोनों ही आपके हिसाब से उत्तम है ( शायद आपने ही किसी ब्लॉग में ऐसा लिखा है).. बस में उन सभी पाठको की तरफ से आपसे अनुरोध करता हूँ की आप २००८ में किया गया अपना वादा जल्द से जल्द पूरा कर दे..:))
एक सुझाव मैं ये देना चाहूँगा की कॉमिक पोस्ट करते समय आप वाटरमार्क का उपयोग क्यों नहीं करते है ?
Rahul: राहुल भाई तारीफ़ी अल्फाज़ों के लिए बहुत शुक्रिया,आप जैसे कॉमिक्स शैदाई(प्रेमी/प्रशंसक) के ऐसे लफ्ज़ ही असली वजह हैं मेरी हौंसला-अफज़ाई की.जी,हाँ मुझे फौलादी सिंह की टारविल सिरीज़ की वो कॉमिक्स याद हैं और मैं जल्दी ही उन्हें पोस्ट करने का इंतज़ाम करता हूँ.
भाई वाटरमार्क मैं इसलिए इस्तेमाल नहीं करता हूँ क्योंकि मुझे कॉमिक के शफ्फाक़ पन्नो पर किसी भी तरह की मोहर/दाग-धब्बा लगाना पसंद नहीं.
वाह ज़हीर भाई दिल जीत लिया आपने तो..बहुत कुछ सीखना है अभी आपसे
zaheer bhai
kuch khaas nahi , bas aise hi dil dukha hua hai ,isliye kuch dino ke liye blogging band kar raha hoon , lekin aaj deewana ki post dekhi to rok nahi paaya ..
kudos ....
bye
vijay
gurrr jaheer bhai itne se kam nahi chalega mujhr puri deewana chahiye ye to yah hua ki mahino se pyase ko do bund pani ki tapka di ho please puri deewana post karo
jaheer bhai, aap ki blog mila to ek din main sara chaan mara. Great blog. Please keep writing.
i know i am too "young" on the blog for a request however really wish more Fauladi singh comics- specailly -anriksh ke bhagwan.
I remember reading that growing up and was in awe of all gods in a fauladi singh comic-:)
Any way best of luck and keep writing
Welcome Amit..I am a die-hard fauladi fan too..I think the comic u r referring to is "Swarg ke bhagwaan" and not " antriksh ke bhagwaan" Its actually sequel to "Antriksh ki Apsara"..
sier deewali aa rahi hai koi dhamekedar diiwali visheshank madhumuskan ya deewana ya koi bhi old comics post karen please comics lover hamare jahir bhai se aap sab bhi request kijiye please
Atul: Atul Bhai don't worry a Madhumuskan is coming soon on Deewali
Not in best of mood nowadays to write something creative here. Anyway good post.
If possible post the M/P feature as well.
SB: Yeah,Arun Bro,i can understand,sometimes it happens when there comes no feel to write anything for quite a long time.Anyway thanks for registering your presence.
Hi,
I have first 500 issues of MAD magazine. In fact it is on net. All you need to do is search for MAD MAGAZINE [Issues 001-500] [.cbr]. It is on t o r r e n t
I am looking for Deewana now!
BTW you can also search for this in google for those MAD comics
DD6EAA918C9C3FF39DCDB25AA34AA8ACBBBACFC8. This will give you the link
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>BOA
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दीवाना मालिक के शोषण के कारण कार्टून और कार्टूनिस्टों का बहुत नुकसान हुआ...
Anon: क्या इस बात पर और रौशनी डाल सकते है की कैसे दीवाना मालिक के कारण कार्टून और कार्टूनिस्टों का बहुत नुकसान हुआ!!
एक कार्टूनिस्ट थे युगल शर्मा जो युगल नाम से कार्टून बनाते थे। उनके बनाए ४ पृष्ठों को ३ पृष्ठों में छापकर ३ का ही भुगतान कर देते थे। कार्टूनिस्ट चन्दर के कई कार्टून ८० के दशक में छपे लेकिन एक पैसे का भुगतान नहीं हुआ। इसी तरह की चालाकियां होती थीं।
T.C.Chander: शुक्रिया चन्दर जी.कही वो चन्दर आप ही तो नही!
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