"मौत से भला किसकी रिश्तेदारी है,
आज हमारी तो कल तुम्हारी बारी है"
दोस्तों,इसी फ़लसफ़े को सच करते हुए इस साल फिल्मी दुनिया की कई मशहूर हस्तियाँ हमसे बिछड़ गयी जिनकी भौतिक उपस्थिति भले ही हमारे बीच में न हो लेकिन जिनका नाम अपने काम की वजह से हमेशा हम सब के दिलों में जिंदा रहेगा ।
ऐसी ही एक वट वृक्ष सरीखी हस्ती थी मशहूर निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा साहब(1932-2012) की जो अक्टूबर माह में हम सब से बिछड़ गए लेकिन जिनका नाम हिंदी फिल्मी दुनिया में हमेशा यश पाता रहेगा ।
इस सपनों के सौदागर सरीखे निर्देशक को जिसकी फ़िल्मों ने हमें मनोरंजन से परिपूर्ण अनगिनत लम्हे दिए हैं उसे आज हम उसकी एक फ़िल्म पर तब्सिरा कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे ।
यश चोपड़ा यानी यश राज चोपड़ा मशहूर निर्माता-निर्देशक बी.आर.चोपड़ा के छोटे भाई थे जिन्होंने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत आई एस जौहर के सह-निर्देशक के रूप में की जिसके बाद यह अपने बड़े भाई के साथ फ़िल्म प्रोडक्शन में जुड़ गए और जिन्होंने स्वतंत्र रूप से इन्हें अपनी फ़िल्म 'धूल का फूल' का निर्देशन सौंपा । 'धूल का फूल' की क़ामयाबी के बाद इन्होने अपने भाई के बैनर के लिए 'धर्मपुत्र','वक़्त','आदमी और इंसान और 'इत्तेफ़ाक' जैसी फ़िल्मों का निर्देशन किया जिनमे से 'वक़्त' और 'इत्तेफ़ाक' ने सफ़लता के झंडे गाड़े जबकि 'धर्मपुत्र' और 'आदमी और इन्सान' ने औसत सफ़लता प्राप्त की ।
आज की इस महफ़िल में हम बात करेंगे फ़िल्म 'वक़्त'(1965) के बाबत जिसकी चटख,चमक और रंग आज लगभग आधी सदी गुज़र जाने के बाद भी फीके नहीं पड़े हैं ।