Thursday, August 19, 2010

# फौलादी सिंह और डिक्टेटर की तबाही

दोस्तों,प्रस्तुत है फौलादी सिंह का एक क्लासिक अंक जिसकी फरमाईश की गई थी कॉमिक्स/नोवल्स के लिविंग encyclopedia जनाब कुलदीप भाई द्वारा.
कल ही कुलदीप भाई ने इस कॉमिक का चित्र मेरी ऑरकुट एल्बम में देखकर इसको स्कैन करने की इच्छा ज़ाहिर की,अब कुलदीप भाई जैसे मित्र की इच्छा हो तो वो मेरे लिए किसी आदेश से कम महत्व नहीं रखती और फलस्वरूप हाज़िर है तुरत-फुरत स्कैन की गई ये कॉमिक.हालाँकि रमजान का पवित्र महीना चल रहा है और इसमें वक़्त कम ही मिल पता है पर फिर भी कुलदीप भाई जैसे मित्रों के लिए कभी भी कुछ भी क्योंकि कुछ मित्र ऐसे होते हैं की भले ही हम उनसे कभी न मिले हो पर वो दिल के बहुत क़रीब महसूस होते हैं.

























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Sunday, August 15, 2010

# Happy Independence Day

First of all a very Happy Independence Day to all Indians.Lets now celebrate our independence by reading those comics which we read for the first time when we were really free...yes,when we were free from tension of livelihood,when we were free from the tension of 'projects',when we were free from the tyranny of 'Boss',when we were free from the daily chikh-chikh of wife,when we free from the tensions of converting 99 into 100,when we were free from the tensions of maintaining day-to-day life,when we were free from the worries of making our 'own' house,when the air was much purer than what we breath in now,when the sunlight was much clearer than its now,when the independence and republic day meant one more holiday and sweets from school,when paradise seems to be located in comics,movies,T.V and summer vacations,when Sunday morning means 'Rangoli' and Thursday evening meant a feature film on Doordarshan,when rainy day meant a another probable holiday from school.



























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Tuesday, August 10, 2010

# पूछे बेताल बताएँ आप,टिंकल के साथ

दोस्तों,चंदामामा के बारे में किसी को बताने की ज़रूरत नहीं है की वो किस प्रकार की पत्रिका थी,वो एक अनोखी पत्रिका थी जिसकी कहानियां भारतीय लोक कथाओं और प्राचीन इतिहास से प्रेरित थीं.चंदामामा की कहानियों के चित्र एक अनोखी अलौकिक दुनिया में पाठकों को सैर करवाते थे,ऐसा लगता था जैसे हम कोई राजा-रानी वाली प्राचीन एनीमेशन फिल्म देख रहे है.
चंदामामा में जो फीचर मुझे सबसे अधिक पसंद था वो था 'विक्रम-बेताल',इसकी कथाएँ उस समय एक अजीब सी सिहरन और रोमांच जगाती थी और कहानी में अंत तक उत्सुकता बनी रहती थी.बेताल का विक्रम से प्रश्न पूछना,विक्रम का जवाब देना और न बोलने की शर्त के भंग होते ही बेताल का वापस उड़ कर पेड़ पर चले जाना...और उस पर प्राचीन चित्र..सब मिला कर कहानी में एक ऐसी अबूझ दिलचस्पी पैदा कर देते थे जिसको वर्णन करने के लिए ठीक से शब्द नहीं मिल रहे.
तो दोस्तों,आज की पोस्ट उसी विक्रम-वेताल की कथा से ही जुडी है,कैसे?....आइये मिलकर जानते है.


 

















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Wednesday, August 4, 2010

# One Post, Many Thoughts!

दोस्तों इस बार काफ़ी सारे ख्यालात ज़हन में घुमड़ रहे है जिन्हें आपके साथ बांटना है पर सोच रहा हूँ की कहाँ से शुरू करू!..क्या पहले उस कॉमिक की बात करूँ जिसके बारे में बात करने की पिछली पोस्ट में बात हुई थी या फिर मरहूम शेहाब जी की उस कॉमिक की बात करू जो इस पोस्ट में आपके साथ मिलकर पढना चाहता हूँ या फिर उस कम्युनिटी के बारे में आप लोगों को बताऊँ जो न चाहते हुए भी हालातों के मद्देनज़र मुझे बनानी पड़ी.
चलिए सबसे पहले उस कॉमिक की ही बात करते हैं जिसके बारे में बात करना पिछली पोस्ट में तय हुआ था और वो कॉमिक है 'वन-वीर लोथार'.दोस्तों ये सिर्फ महज़ एक आम मैन्ड्रेक कॉमिक नहीं है जिसमे मैन्ड्रेक हमेशा की तरह अपराधियों से अपनी जादुई शक्ति के बल पर लड़ता है,बल्कि ये एक ऐसी कहानी है जो यह बताती है की मैन्ड्रेक और उसका जिगरी दोस्त लोथार कब और कैसे मिले.
 

 






















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