31 जुलाई 1980 के दोपहर के करीब 12 बजे का समय रहा होगा जब मशहूर और मारूफ़ गुलुकार मो रफ़ी अपने घर पर आराम कर रहे थे तभी उन्हें पेट और सीने में भारीपन सा महसूस हुआ जो उन्हें बदहज़मी की वजह से होता लगा और जिसके चलते उन्होंने घरेलु नौकर से सोडा मिंट की गोली मंगवा कर खा ली जिसके कुछ देर बाद उन्हें आराम महसूस हुआ और वे आराम करने लगे ।
लेकिन 4 बजे के आसपास उन्हें फिर दर्द महसूस हुआ और इस बार शिद्दत के साथ,उन्होंने फ़ौरन घर में मौजूद अपनी बीवी को बुलाया जो उनकी उखड़ती साँसे और नीले पड़ते होंठों को देख घबरा गयी । फ़ौरन नज़दीकी डॉक्टर को बुलवाया गया जिसने उनकी जांच करने के बाद उन्हें नेशनल हॉस्पिटल ले जाने की सलाह दी और रफ़ी साहब को उनकी कार में नेशनल हॉस्पिटल ले जाया गया ।
नेशनल हॉस्पिटल की लिफ्ट ख़राब थी और ईसीजी रूम ऊपर था लिहाज़ा रफ़ी साहब खुद सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर गए जहाँ लम्बी जांच के बाद पता चला कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा है और उन्हें फ़ौरन मुंबई हॉस्पिटल ले जाने की सलाह दी गयी क्योंकि नेशनल हॉस्पिटल में दिल के दौरे के इलाज की सुविधाएं उपलब्ध नहीं थी । लिहाज़ा मुंबई हॉस्पिटल के इंचार्ज से बात कर रफ़ी साहब शाम के 7 तक बजे वहाँ पहुँचे जहाँ उनका मुक़म्मल इलाज शुरू हुआ लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी क्योंकि दौरा पड़ने के बाद से बेहद कीमती समय हॉस्पिटल के चक्कर काटने में जाया हो चुका था । बीच में रफ़ी साहब की तबियत कुछ संभली और उन्होंने अपने साथ मौजूद घर वालों से बात भी की लेकिन फिर जो तबियत बिगड़ी तो सम्भली नहीं और यह अज़ीमतरीन फ़नकार रात 10 बजकर 25 मिनट पर अपने करोड़ों चाहने वालों को छोड़कर इस फ़ानी दुनिया से चला गया ।
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लेकिन 4 बजे के आसपास उन्हें फिर दर्द महसूस हुआ और इस बार शिद्दत के साथ,उन्होंने फ़ौरन घर में मौजूद अपनी बीवी को बुलाया जो उनकी उखड़ती साँसे और नीले पड़ते होंठों को देख घबरा गयी । फ़ौरन नज़दीकी डॉक्टर को बुलवाया गया जिसने उनकी जांच करने के बाद उन्हें नेशनल हॉस्पिटल ले जाने की सलाह दी और रफ़ी साहब को उनकी कार में नेशनल हॉस्पिटल ले जाया गया ।
नेशनल हॉस्पिटल की लिफ्ट ख़राब थी और ईसीजी रूम ऊपर था लिहाज़ा रफ़ी साहब खुद सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर गए जहाँ लम्बी जांच के बाद पता चला कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा है और उन्हें फ़ौरन मुंबई हॉस्पिटल ले जाने की सलाह दी गयी क्योंकि नेशनल हॉस्पिटल में दिल के दौरे के इलाज की सुविधाएं उपलब्ध नहीं थी । लिहाज़ा मुंबई हॉस्पिटल के इंचार्ज से बात कर रफ़ी साहब शाम के 7 तक बजे वहाँ पहुँचे जहाँ उनका मुक़म्मल इलाज शुरू हुआ लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी क्योंकि दौरा पड़ने के बाद से बेहद कीमती समय हॉस्पिटल के चक्कर काटने में जाया हो चुका था । बीच में रफ़ी साहब की तबियत कुछ संभली और उन्होंने अपने साथ मौजूद घर वालों से बात भी की लेकिन फिर जो तबियत बिगड़ी तो सम्भली नहीं और यह अज़ीमतरीन फ़नकार रात 10 बजकर 25 मिनट पर अपने करोड़ों चाहने वालों को छोड़कर इस फ़ानी दुनिया से चला गया ।