Monday, June 24, 2013

# The Sound Of Music

दोस्तों कहते हैं कि संगीत में भी एक नशा होता है जो सुनने वाले को बेसुध कर देता है । कहा तो इतना तक गया है कि कई-कई संगीतकार तो अपने संगीत से सम्मोहित कर लोगों को वश में कर लेते थे । 

'Pied Piper Of Hemlin' की कथा तो आप सबने पढ़ी/सुनी ही होगी जिसमे Hemlin शहर के निवासी अपने शहर के लातादाद(असंख्य) चूहों से छुटकारा पाने के लिए एक दक्ष बांसुरी वादक को बुलाते हैं जो अपनी बांसुरी की मीठी और मोहक तान पर चूहों को सम्मोहित कर उन्हें शहर से बाहर एक नदी में ले जाकर डुबो कर नगरवासियों को उनसे निजात दिलाता है ।






















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Sunday, June 16, 2013

"आखरी मुग़ल "






दोस्तों , कॉमिक वर्ल्ड पर आज हम भारतीय इतिहास के पन्ने पलटते हुए चलते हैं और मिलते हैं  भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले युद्ध "1 8 5 7 के विद्रोह " के वयुवृद्ध सेनानायक , सच्चे देशभक्त , अपने बे पनाह दर्द ए दिल का इजहार  अपनी कलम के माध्यम से व्यक्त करने वाले मशहूर उर्दू  कवि  , उर्दू  गजल सम्राट ,चित्र भारती कथामाला के दुर्लभ अंक #3 के नायक 'आखरी मुग़ल सम्राट मिर्ज़ा अबू  ज़फर सिराजुद्दीन मोहम्मद  उर्फ़




                                           "बहादुर शाह ज़फर "
 

"ना किसी की आंख का नूर हूँ , न किसी के दिल का करार हूँ , जो किसी के काम ना आ सके , मैं वो एक मुश्त -ए -गुबार हूँ "
 



आखिर क्या वजह थी इनके लिखे प्रत्येक शब्द में लिपटे दर्द और पीड़ा की ? चलिए जानने की कोशिश करते हैं :-


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Saturday, June 1, 2013

# Fabulous Filmfare

दोस्तों,अगर आज़ाद हिंदुस्तान के सबसे लोकप्रिय फ़िल्मी रिसालों(पत्रिकाओं) की बात की जाये तो ज़ेहन में बिलाशुबह 'फ़िल्मफ़ेयर' का नाम सबसे पहले उभरता है । हिंदुस्तान,जहाँ फ़िल्में और क्रिकेट को किसी धर्म से कम नहीं माना जाता वहाँ आम जनमानस तक फ़िल्में और फ़िल्मी सितारों की खबरें पहुँचाने में इन फ़िल्मी रिसालों का बहुत बड़ा हाथ है और आज हम बात करेंगे ऐसी ही एक फ़िल्मी पत्रिका के बारे में जो सन 1952 से लेकर आज तक किसी सितारे की तरह जगमगा रही है । 

सन 1838 में आरम्भ हुए टाइम्स ग्रुप ने आज़ादी के बाद महसूस किया कि फ़िल्में एक सशक्त लोकप्रिय माध्यम बनकर उभरी हैं और इस क्षेत्र में एक 'यूजर फ्रेंडली' पत्रिका की कमी है क्योंकि उस दौर में लोकप्रियता की चोटी पर बाबुराव पटेल की 'फिल्म इंडिया' थी जो मुख्यतया: फ़िल्मी समीक्षाओं पर अपने तेज़ाबी आलेखों और अदाकारों की कटु आलोचना के लिए जानी जाती थी । 
चूँकि फ़िल्म इंडिया अपने लेखों और समीक्षाओं में सितारों की टांग खींचने में कोई कसर नहीं रखा करती थी अत: यह सितारों की गुड बुक में कभी नहीं रही जिसके चलते टाइम्स ग्रुप ने ऐसा महसूस किया कि सिनेमा की बढ़ती लोकप्रियता के फलस्वरूप हिंदुस्तानी सिने-प्रेमी सितारों के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानने के इच्छुक हैं इसलिए उन्होंने एक ऐसी फ़िल्मी पत्रिका की परिकल्पना की जिसके सितारों के साथ मधुर सम्बन्ध हों और जो इनके फ़िल्मी और निजी जीवन के क्रियाकलापों के बारे में और करीब से जानने की एक आम सिने-दर्शक की क्षुधा को शांत कर सके । लिहाज़ा 'फ़िल्मफ़ेयर' वजूद में आई और अंग्रेज़ी भाषा एवं आठ आने क़ीमत वाला इसका प्रथम अंक 7 मार्च 1952 की मोहर लिए बाज़ार में आया जिसके कवर पर कामिनी कौशल की तस्वीर थी । 





        






















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