दोस्तों,महाबली वेताल के जन्म-मास उत्सव को मनाते हुए हम आज एक और लोमहर्षक वेताल कथा पर बात करेंगे जो अपने-आप में कई कारणों से विशिष्ट हैं । यह एक ऐसी कथा है जिसमे कई वेताल मानकों और स्थापित परम्पराओं को तोड़ा गया है और मज़े की बात यह है की इन मानकों को किसी और ने नहीं बल्कि खुद ली-फ़ाल्क ने तोड़ा है और मुझे भरपूर शुबहा है कि इन तथ्यों कि तरफ़ शायद ही पहले किसी का ध्यान गया हो ।
क्या हैं वो वेताल परम्पराएं और क्या हैं वो मानक इन पर हम आगे तो बात करेंगे ही लेकिन उससे पहले बात करते हैं इस कहानी की अन्य विशेषताओं पर । वेताल-पुरखों के कारनामों पर आधारित कथाएँ हमेशा से सामान्य से अधिक रोमांचक और दिलचस्प हुआ करती हैं और यदि कथा खुद फ़ाल्क द्वारा लिखित हो तो फिर क्या कहने !
ऐसी ही एक सन्डे कथा है S-137,'The Fourth Son' या 'चौथा पुत्र' जो अख़बारों में नज़र आई थी 18 अगस्त 91 से लेकर 17 मई 1992 तक यानि की इंद्रजाल कॉमिक्स के दु:खद अवसान(1990) के उपरांत जिसकी वजह से यह कहानी इंद्रजाल कॉमिक्स के पन्नो की शोभा तो न बन सकी लेकिन डायमंड कॉमिक्स के डाईजेस्ट न.61/62 में अवश्य ही इसने अपनी सतरंगी छटा बिखेरी ।