Sunday, May 6, 2012

# शहरी सभ्यता का आलोचक वेताल


दोस्तों इस पोस्ट के मेहमान लेखक हैं दिनेश श्रीनेत जो मीडिया में एक जाना-माना नाम है।  
गोरखपुर में जन्मे दिनेश कथाकार और पेशे से पत्रकार हैं। आजकल दैनिक 'अमर उजाला' में बतौर वरिष्ठ प्रबंधक कार्यरत हैं। इंद्रजाल कॉमिक्स से दिनेश को बचपन से लगाव रहा है और इंद्रजाल कॉमिक्स में प्रकाशित चुनिन्दा कहानियों पर दिनेश गाहे-बगाहे हम सब के साथ तब्सिरा करते रहते हैं और ऐसे ही एक तब्सरे का मरकज़ बनने का शर्फ़ आज कॉमिक वर्ल्ड को हासिल हुआ है जिसके लिए कॉमिक वर्ल्ड के पाठकों की तरफ से दिनेश जी को बहुत-बहुत धन्यवाद।  
गाज़ियाबाद में कार्यरत दिनेश श्रीनेत फिल्म विधा पर आधारित एक ब्लॉग भी लिखते हैं जिसका नाम है इंडियन बॉयस्कोप। 































"To me, The Phantom and Mandrake are very real - much more than the people walking around whom I don't see very much. You have to believe in your own characters."
Lee Falk, creator of the character Phantom


बचपन में इंद्रजाल कामिक्स की जिन कहानियों ने मुझ पर सबसे गहरा असर डाला गृहस्थ वेताल उन्हीं में से एक है। इस कॉमिक्स में ली फॉक बिल्कुल ईवान इलीच की तरह आधुनिक सभ्यता के गहरे आलोचक के रुप में सामने आते हैं। शायद इसीलिए इस कहानी को कॉमिक्स के इतिहास की कुछ असाधारण रचनाओं में गिना जाना चाहिए। यह भी सच है कि आधुनिक शहरी सभ्यता की आलोचना के लिए वेताल से बेहतर कोई किरदार नहीं हो सकता था। एक आम इंसान की तरह जीने के संकल्प के साथ वेताल का शहर जाना दरअसल एक ऐसी काव्यात्मक विडंबना को जन्म देता है- जो गृहस्थ वेताल एक आम कहानी से ऊपर का दर्जा दे देती है।

वेताल की आम कॉमिक कथाओं से अलग इस कहानी की शुरुआत में ही एक अवसाद है। उसकी गुफा में लोग उसे उदास देखते हैं मगर पूछते नहीं हैं। सिर्फ गुर्रन उस फैसले का राजदार है। कहानी की शुरुआत अपनी सारी शानदार विरासत छोड़ने की दुविधा से शुरु होती है। वेताल गुर्रन से कहता है, ‘मैं वेतालों की 21वीं पीढ़ी में हूं। बचपन से यही कुछ देखा है... यह सब छोड़ दूं?’ इन संवादों के साथ हम देखते हैं भव्य खोपड़ीनुमा गुफा, मशाल की रोशनी में जगमगाती वेताल की पिछली पीढ़ियों की महागाथाएं और गुफा में रखी बेशुमार संपत्ति। इस फैसले के पीछे 21वीं पीढ़ी के वेताल की मार्मिक प्रेम कहानी झिलमिला रही है।

यह एक नितांत निजी फैसला है- अपने प्रेम और खुशियों के लिए वेताल परंपरा के बोझ से छुटकारा पाना चाहता है। ठीक वैसे ही जैसे हमारे भारतीय समाज में कदम-कदम पर निजी खुशियां और परंपरा की विरासत आपस में टकराती हैं। वेताल की यह दुविधा ही पूरी कथा पर उदासी की चादर डाल देती है। शुरुआती फ्रेमों में जहां अपनों से और अपनी विरासत से बिछुड़ने की तकलीफ है वहीं एक अनिश्चित भविष्य को लेकर ढेर सारे संशय भी। इस वेताल ने भी अपने पुरखों की तरह परंपरा को जारी रखने की शपथ ली थी। खुद वेताल के शब्दों में, ...जीवन भर- जब तक किसी हत्यारे की गोली या छूरा मुझे खत्म न कर दे! यहां वेताल के मन में खुद की मौत को लेकर दुविधा नहीं है बल्कि अपने न होने पर किसी प्रिय के अकेले रह जाने की चिंता है।

आखिर वेताल ने फैसला ले लिया, बांदार लोगों मैं जा रहा हूं। इस बीच कोई वेताल नहीं रहेगा। वे पूछते हैं, तुम वापस तो आओगे? एक अन्य वनवासी कहता है, वेताल तो हमेशा ही होता है। इन दो वाक्यों से हम वेताल के फैसले की गहराई और अफ्रीका के उन बीहड़ जंगलों में उस शख्स की जड़ों को समझ जाते हैं। गुर्रन खर्च के लिए कुछ सोना ले जाने को कहता है मगर वेताल यह कहकर मना कर देता है कि इस निधि का इस्तेमाल सिर्फ बुराई को मिटाने के काम में करना चाहिए। यहां पर वेताल के संकल्प की गहराई हमें समझ में आने लगती है। वह खुद को एक आम इनसान की कसौटी पर रखना चाहता है। क्या वह डायना पामर के लायक एक आम इनसान बनकर रह सकेगा? गुर्रन पूछता है, वहां के लोग क्या करते हैं महाबली? वेताल जवाब देता है, उसे रोजी कमाना कहते हैं... गुर्रन का जवाब, यह कुछ जंचता नहीं। यहां जंगल और शहर के मूल्य साफ तौर पर विभाजित होते दिखते हैं।

वेताल शहर में अपनी चिरपरिचित वेशभूषा में निकलता है। ओवरकोट, चेहरे पर गॉगल्स और हैट। अपने और शेरा के खाने के लिए वेताल एक होटल में बर्तन धोने का काम करता है। इसके बाद वह रोजी की तलाश में आगे बढ़ता है। कहीं नौकरी नहीं मिलती। उसे अपने रहने का ठिकाना भी चाहिए। मगर हर जगह पेशगी (एडवांस) किराया चाहिए। एक कमरे का इंतजाम करके वह निकलता है तो आखिरकार उसे खाई खोदने के एक मामूली काम पर रख लिया जाता है।













यहां से वेताल का हम एक नया रूप देखते हैं, जो न तो किसी पहले की कॉमिक्स में दिखा और न बाद की। सिर पर कैप, आंखों में गॉगल्स, सफेद शर्ट और नीली जींस। वहां उसका कुछ लोगों से झगड़ा हो जाता है- वेताल अपने चिर-परिचित अंदाज में उनसे निपट भी लेता है। बाद में काम खत्म होने पर ली फॉक का सधा हुआ व्यंग सामने आता है- जब वेताल को आधा वेतन मिलता है। वेतन देने वाला बताता है कि आधा वेतन कट गया- यूनियन के चंदे, पेंशन फंड और तमाम टैक्स में। वेताल हतप्रभ होकर अपना आधा वेतन लिए शेरा के साथ खड़ा रह जाता है और कहता है, किसी ने बताया नहीं कि सामान्य जीवन में यह भी होता है। है न कचोटने वाला तीखा व्यंग! हममें से शायद बहुतों को न पता हो कि ली फॉक कॉमिक्स के रचयिता होने के साथ-साथ एक बेहतरीन थिएटर डायरेक्टर भी थे। शायद इसीलिए वे वेताल की बेहद सामान्य सी दिखने वाली कहानियों में असाधारण नाटकीयता पैदा कर सके। ये वो निर्देशक था जिसने मार्लिन ब्रैंडो, पॉल न्यूमैन और जेम्स मैसन जैसे अभिनेताओं से अपने नाटकों में अभिनय कराया।












जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है शहरी जीवन की विकृतियां सामने आती जाती हैं। एक शख्स पिस्तौल दिखाकर वेताल की पहली कमाई लूट लेता है। वेताल सोचता है कि उसे कानून अपने हाथ मे नहीं लेना चाहिए। शहर में कानून-व्यवस्था के रखवाले उसकी मदद करेंगे मगर सिपाही भागते हुए चोर को देखने के बावजूद यह कहकर निकल जाता है कि मेरी ड्यूटी पार्क में लगी है यह मेरा काम नहीं है। पैसा न जमा करने के कारण उसे किराए का घर भी नहीं मिलता है। वह कहीं सोने की कोशिश करता है तो पुलिस वाले उसे चलता करते हैं। पूरी कहानी में वेताल का अपने कुत्ते (या भेड़िए?) से एकालाप चलता रहता है। एक मूक जीव के साथ एक-तरफा संवाद वेताल की इस कहानी को अद्भुत अभिव्यंजना प्रदान करता है।

यह शायद वेताल की इकलौती कॉमिक्स होगी जिसमें किसी एक कहानी के सूत्र में घटनाएं नहीं पिरोई गई हैं। पुरी कॉमिक्स में छोटी-छोटी एक दूसरे से असंबद्ध कहानियां हैं। इसकी वजह से उनके ही पेज होने के बावजूद इस कथा का कैनवस बहुत बड़ा महसूस होता है। वह एक असहाय वृद्ध को लूटने वाले लुटेरों को खोज निकालता है। जब गुंडे उसे पूछते हैं कि वह किस हैसियत से उनकी खोजबीन करता है तो वेताल का एक असाधारण जवाब सामने आता है। वेताल कहता है, नागरिक द्वारा गिरफ्तारी समझते हो? मैं तुम दोनों को लूट-मार के अपराध में गिरफ्तार करता हूं। 

आगे वेताल नाइट गाउन पहनी एक सुंदर सी युवती को धधकती इमारत से बचाता है। फिर वह उचक्कों के एक गैंग में जा फंसता है। यहां जीवन का बेहद यथार्थवादी चित्रण सामने आता है। वहां रात को एक व्यक्ति वेताल की चाकू से हत्या करके उसके जूते चुराना चाहता है। मगर शेरा की सतर्कता के चलते वेताल जाग जाता है। बाकी लोग वेताल पर हमला करने वाले को जान से मारना चाहते हैं तो वेताल उन्हें रोकता है। नतीजे में उनसे झड़प हो जाती है।

सभी वेताल से पिटकर भाग जाते हैं तो इस कॉमिक्स का एक और न भूलने वाला दृश्य सामने आता है। उचक्का अपनी सफाई में कहता है, मेरा इरादा तुम्हें मारने का नहीं था, सिर्फ तुम्हारे जूते लेना चाहता था। मेरे पास हैं जो नहीं... वेताल कहता है तो मांग लेते- मैं दे देता। तस्वीर में वेताल यह कहते हुए अपने जूते उतार रहा है और वह व्यक्ति हतप्रभ सा उसे देख रहा है। बहुत बेहतरीन साहित्यिक रचनाओं में नैतिकता का इतना सहज और सुंदर पाठ दुर्लभ है।















कहानी अभी खत्म नहीं होती- आगे वेताल का सामना बैंक में कुछ लोगों को बंधक बनाकर रखे लुटेरों से होता है। इस मोड़ तक आते-आते वेताल के फैसले दुविधा से परे नजर आने लगते हैं। वह बंधकों को लुटेरों के चंगुल से छुड़ाता है। और फिर कहानी एक दिलचस्प मोड़ पर पहुंचती है। यहां एक रात का ब्योरा है। रात मानों ठहर जाती है। शहर की एक ऐसी रात जो असाधारण है। जिस रात कोई गुनाह नहीं हुए। क्योंकि चार्ल्स ब्रानसन की डेथ विश की तरह कोई अपराधियों के गुनाहों की सजा देने के लिए रात को घूम रहा है।

कहानी के अंतिम हिस्से में वेताल एक दुकान पर सेल्समैन की नौकरी करने पहुंचता है। यहां एक संवाद देखें... वेताल कहता है, आधी दुनिया बिकवाली का धंधा करती है, आधी खरीदती है। मैं यही करके देखूं। पूंजीवादी व्यवस्था पर एक बेहद साफ-साफ तंज़ नजर आता है यहां पर। दुकान पर वेताल की सेल्समैनी चलनी नहीं थी, क्योंकि वह ग्राहकों को हर प्रोडक्ट की असलियत बताता चलता है।

अंततः उस दुकान के मालिक से अपमानित होकर निकलने के बाद वेताल का फैसला हमें सुनाई देता है, मेरा जी भर गया- झूठ, फरेब, चोरी, अन्याय, घृणा...





















और वह लौट पड़ता है। आगे के कुछ बेहद शानदार फ्रेमों में हम वेताल के सफेद घोड़े की टापों से गूंजते जंगल को देखते हैं। वेताल वापस लौट आता है। बीहड़वन में खुशियों की लहर दौड़ जाती है- और वेताल अकेले में कहता है- डायना मैंने कोशिश की- जैसा हूं मुझे वैसा ही स्वीकार करो-

यह वेताल की प्रेमिका की गैरमौजूदगी में भी एक खूबसूरत प्रेम कहानी है। कॉमिक्स में कहीं भी डायना मौजूद नहीं है। सिर्फ वह बीच-बीच में वेताल के ख्यालों में आती है। आर्टिस्ट ने हर बार बड़ी खूबसूरती से डायना को प्रस्तुत किया है। वह मुस्कुराती-खुद में डूबी किसी स्वप्न सरीखी दिखती है। वेताल की आकांक्षा का इससे सुंदर प्रतिरूप नहीं बन सकता था।

इस कहानी में वेताल एक जगह जब अपने भविष्य की कल्पना करता है तो शाम को घर लौटने पर डायना और दो बच्चे (एक लड़का और एक लड़की) उसका इंतजार कर रहे होते हैं। (काफी कुछ भारतीय है न? शायद इसीलिए फैंटम भारत में इस कदर लोकप्रिय हुआ...) बहुतों को पता है कि बाद में वेताल के जुड़वां बच्चे हुए किट और हेलोइस। वे बिल्कुल उसी तरह दिखते थे जैसे वेताल ने इस कॉमिक्स में अपने परिवार को ख्वाबों में देखा था। शायद ली फॉक के चेतन-अवचेतन में वेताल ये दो जुड़वां बच्चे बहुत पहले से ही थे। मैंने तो शायद इस कॉमिक्स के जरिए (तब मैं बहुत छोटा था- अभी पढ़ना सीख ही रहा था- हालांकि बाद में जाने कितनी बार इस कॉमिक्स को पढ़ा होगा) वेताल के चरित्र को इतनी गहराई से समझ लिया कि यह किरदार हमेशा के लिए मन में अंकित हो गया।

Download 'Grihasth Vetal'
(D/L courtesy Raj Vardhan)

10 comments:

kuldeepjain said...

इतने दिनों बाद..
जहीर भाई की कलम से निकली एक और बेहद शानदार विवेचना ..
बहुत खूब..

vinita saraswat said...

sabse pahle comic padhne ki hod.....
missing those DAYS.....

vinita saraswat said...

sabse pahle comic padhne ki hod.....
missing those DAYS.....

Comic World said...

जी हाँ दिनेश भाई एकदम बजा फ़रमाया आपने की यह वेताल कथा अलग हटकर और महत्वपूर्ण सन्देश लिए हुए है जो शहरी जीवन के खोखलेपन पर चोट करती है | यह कहानी दिखाती है की सही मायनों में 'असभ्य' और 'जंगली' कौन हैं,वे जो जंगल में रहते हैं और जंगली एवं असभ्य कहलाते हैं या फिर वे जो शहरों में बसे हुए हैं |

इस कहानी में मुझे राज कपूर की फिल्म श्री ४२० के बिम्ब नज़र आते हैं जब राज कपूर बड़े शहर(मुंबई) काम की तलाश में आता है तो उसे भी कुछ ऐसी ही घटनाओं से दो-चार होना पड़ता है जिनसे इस कथा में वेताल दो-चार होता है | उदहारण के तौर पर राज कपूर का बैंच पर सोना और सिपाही का उसे वहां से भगाना,मुंबई की सडको पर भीख मांगते फ़कीर का उससे कहना की आर वो इमानदार,पढ़ा-लिखा और भरोसेमंद आदमी है तो उसे यहाँ काम नहीं मिल सकता क्योंकि इस 'शहर' में काम का आदमी सिर्फ़ वो है जो झूठ बोलकर,दूसरो को बेवकूफ बनाकर अपना माल बेचना जाने |
जारी है...

Unknown said...

At last... Zaheer bhai is back with one post. Thank god. I was wondering 'did Zaheer bhai stopped blogging?'. But accha hi hua ki mai jaisa soch raha tha vaisa nahi hua.
A great detailed post by the guest blogger Mr. Dinesh Shrinet ji. Really awesome.

Comic World said...

AKF: Well,Anand bro thanks for kind words.The blogging take sometime a backseat in comparison with daily life/bread priorities.

Ranjan said...

only one word "awesome"

Yakuza said...

Maza aa gaya zaheer bhai ... Na sirf aap jo comics upload karte hain vo shandaar hoti hai, balki aapka usko prastut karne ka tarika ek dam nirala hai, pad ke maza aa jata hai.

Indrajaal comics maine kabhi bachpan mein nahi padi .. sirf is blog ke jariye hi jitna jaan paya. Betaal ki katha vakayi bemisaal hai ..

Bhai .. keep this good work. Looking forward for more such wonderful gems.

Lalit

प्रवीण पाण्डेय said...

विक्रम वेताल बचपन से प्रिय रहा है, अब भी दिखती है तो पढ़ लेते हैं।

aditya M said...

zaheer sahab

kalam ke shashakt lekhni or priya vetaal ke jeevan ke anchuye pahluon pe aap ki parkhi nazar

jeevan men or kya chahiye

aap yuun hi katha saritsaagar se motiyan banten isi abhilasha ke sath
aap ka
Aditya

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