Thursday, December 6, 2012

# Andha Yuddh

दोस्तों,फ़र्ज़ कीजिये एक ऐसी कहानी का जिसमे एक आतंकवादी किसी राज्य के मुख्यमंत्री का क़त्ल कर एक घर में घुस जाता है जिसमे अपनी माज़ूर और दूसरों पर बोझ बन चुकी ज़िन्दगी से निराश मौत की कामना करती पैरो से अपाहिज एक लड़की मौजूद होती है । आतंकवादी उस बेबस और ज़िन्दगी से मायूस लड़की को बंधक बना लेता है । पुलिस मकान को चारों तरफ़ से घेरे खड़ी है ।  आतंकवादी के बच निकलने के एकलौता सहारा वह अपाहिज लड़की है जो पहले से ही अपने ज़िन्दगी से बेज़ार है और दिन-रात मौत की कामना करती रहती है ।  आतंकवादी लड़की की जान लेने की धमकी देकर पुलिस को धमकाए रखता है और एक जाँबाज़ और कर्मठ इंस्पेक्टर सीमित संसाधनों के बावजूद उस खूँखार आतंकवादी को पकड़ने की तमाम जुगतें लगाता बैठता है । अपनी ज़िन्दगी से परेशान विकलांग लड़की आतंकवादी से उसके मक़सद ,दहशतगर्दी और दूसरों की जान लेने के उसके कृत्यों की सार्थकता के बाबत पूछती है जिसके जवाबों से उस आतंकवादी की मनोस्थिति की कैफ़ियत से वाकफियत होती है ।  जितना अरसा वह आतंकवादी और लड़की साथ गुज़ारने पर मजबूर होते हैं उसमे एक दहशतगर्द की मानसिकता के कड़वे लेकिन रोचक पहलु उजागर होते हैं ।

दोस्तों,आज हम एक ऐसी फ़िल्म के बारे में बात करेंगे जिसमे यह विषय बड़ी संजीदगी और संवेदनशीलता के साथ हैंडल किया जाता है और इस फ़िल्म का नाम है 'अँधा युद्ध'





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Saturday, December 1, 2012

# Review of The Phantom:The Complete Sundays Vol.1

The long awaited publication from Hermes press 'The Phantom:The Complete Sundays:Volume One 1939-1942' has been released.This volume is first in the ambitious series of publication of all Sunday Strips in a magnanimous format by Hermes Press.
The Hermes Press publication has already been publishing Phantom Daily Strips in B/W format but in color this volume is first in its series.


  

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Friday, November 16, 2012

# Waqt

"मौत से भला किसकी रिश्तेदारी है,
आज हमारी तो कल तुम्हारी बारी है"

दोस्तों,इसी फ़लसफ़े को सच करते हुए इस साल फिल्मी दुनिया की कई मशहूर हस्तियाँ हमसे बिछड़ गयी जिनकी भौतिक उपस्थिति भले ही हमारे बीच में न हो लेकिन जिनका नाम अपने काम की वजह से हमेशा हम सब के दिलों में जिंदा रहेगा ।

ऐसी ही एक वट वृक्ष सरीखी हस्ती थी मशहूर निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा साहब(1932-2012) की जो अक्टूबर माह में हम सब से बिछड़ गए लेकिन जिनका नाम हिंदी फिल्मी दुनिया में हमेशा यश पाता रहेगा ।
इस सपनों के सौदागर सरीखे निर्देशक को जिसकी फ़िल्मों ने हमें मनोरंजन से परिपूर्ण अनगिनत लम्हे दिए हैं उसे आज हम उसकी एक फ़िल्म पर तब्सिरा कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे ।

यश चोपड़ा यानी यश राज चोपड़ा मशहूर निर्माता-निर्देशक बी.आर.चोपड़ा के छोटे भाई थे जिन्होंने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत आई एस जौहर के सह-निर्देशक के रूप में की जिसके बाद यह अपने बड़े भाई के साथ फ़िल्म प्रोडक्शन में जुड़ गए और जिन्होंने स्वतंत्र रूप से इन्हें अपनी फ़िल्म 'धूल का फूल' का निर्देशन सौंपा ।  'धूल का फूल' की क़ामयाबी के बाद इन्होने अपने भाई के बैनर के लिए 'धर्मपुत्र','वक़्त','आदमी और इंसान और 'इत्तेफ़ाक' जैसी फ़िल्मों का निर्देशन किया जिनमे से 'वक़्त' और 'इत्तेफ़ाक' ने सफ़लता के झंडे गाड़े जबकि 'धर्मपुत्र' और 'आदमी और इन्सान' ने औसत सफ़लता प्राप्त की ।
आज की इस महफ़िल में हम बात करेंगे फ़िल्म 'वक़्त'(1965) के बाबत जिसकी चटख,चमक और रंग आज लगभग आधी सदी गुज़र जाने के बाद भी फीके नहीं पड़े हैं ।




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Saturday, November 10, 2012

# Shakti

शहर: बरेली,
ज़िला: उत्तर प्रदेश
22 सितम्बर सन 1982,सुबह के क़रीब 10 बजे
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शहर बरेली का सबसे बड़ा और सबसे भव्य थियेटर प्रभा टाकीज़ जो रामपुर गार्डन नामक पॉश कॉलोनी के नज़दीक स्थित है । आज इस टाकीज़ में पैर रखने तक को जगह नहीं है और हर तरफ़ सर ही सर नज़र आ रहे हैं । हर तरफ़ भीड़ ही भीड़ ।  बुकिंग विंडो,जहाँ टिकटें बांटी जाती है कब की बंद हो चुकी है लेकिन अब भी विंडो को घेरे कई लोग इस उम्मीद में खड़े हैं कि शायद विंडो दोबारा फिर खुलेगी । विंडो के नज़दीक एक बड़ा सा बोर्ड लगा हुआ है जिसपर मोटे-मोटे अंग्रेज़ी के अक्षरों में लिखा है 'हॉउसफुल' जिसे देख कर टिकट खरीदने आने वाले दर्शक निराशा में सर हिलाते हुए वापस लौट रहे हैं ।  जिनको टिकट मिल चुके हैं वे चहरे पर प्रसन्नता और विजेता के से भाव लिए दूसरो को हिकारत भरी नज़रों से देखते हुए घूम रहे हैं और जिनको टिकट नहीं मिले हैं वे बेचैनी के आलम में टिकटों की जुगाड़ में हड़बड़ाये इधर-उधर घूम रहे हैं । 

एक कोने में एक ब्लैकिया टिकट बेच रहा है जिसे घेर कर भीड़ खड़ी है । ब्लैकिया बड़ी दक्षता से एक हाथ में टिकटों को दबाये और दुसरे हाथ में नोटों को उँगलियों के बीच दबाये 'पाँच का बीस,पाँच का बीस' कहता हुआ टिकट बेच रहा है । भीड़ उससे मोलभाव कर रही है लेकिन वह बड़े तजुर्बेकार और घिसे हुए अंदाज़ में अपनी मांग से टस से मस नहीं हो रहा है । 

ब्लैकिया और उसे घेरे खड़ी भीड़ से थोड़ी दूर टाकीज़ के एक गेट के नज़दीक एक छह-सात साल का बच्चा दीवार के सहारे खड़ी साईकल पर बैठा हुआ उत्सुकता और आशा भरी से नज़रों से बार-बार मुंह उठा कर भीड़ की तरफ देख रहा है । थोड़ी देर में भीड़ से निकल कर एक युवक साइकिल की तरफ़ आता है जिसे देख कर बच्चा उत्सुकता भरे अंदाज़ में कहता है,"क्या हुआ मुख़्तार भाई टिकट मिला क्या?" । युवक ना में सर हिलाता है । बच्चे का सर लटक जाता है । "चलो वापस चलते हैं",युवक कहता है । साइकिल पर बैठकर दोनों वापस लौट जाते हैं लेकिन उसी दिन के दुसरे शो के लिए करीब 1 बजे दोनों फिर वापस लौटते हैं । युवक टिकट विंडो पर किसी राशन की दुकान पर लगी सर्प सरीखी लम्बी लाइन में लग जाता है और बच्चा साईकल की रखवाली करता हुआ उसपर बैठा हुआ इस बार टिकट मिल जाने की आशा मन में लिए हुए इंतज़ार करता है । युवक एक बार फ़िर टिकट विंडो से टिकट प्राप्त करने की जीतोड़ कोशिश करता है लेकिन इस बार भी उसके हाथ निराशा ही लगती है और दोनों को फिर मुंह लटकाए घर वापस लौटना पड़ता है ।

दोस्तों,उस प्रभा थियेटर में-जिसका नाम प्रभा टाकीज़ था-फ़िल्म 'शक्ति' लगी थी और वह बच्चा और कोई नहीं बल्कि खुद खाकसार था और आज की इस बज़्मे महफ़िल में हम तब्सिरा करेंगे फ़िल्म 'शक्ति' पर । 







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Saturday, November 3, 2012

# गर्म हवा(Scorching Winds)

दोस्तों,इस ब्लॉग पर इतने तवील अरसे बाद हाज़िरी भरने के लिए आप सबसे मुआफ़ी की दरख्वास्त है । दरअसल हुआ यह था कि रुचियों के सामायिक परिवर्तनों के चलते ब्लॉग से तबियत उचटी और फेसबुक पर जा ठहरी जहाँ कुछ अरसे तक मशहूर लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक साहब के कद्रदानों के बीच रहा.......कुछ उनकी सुनी और कुछ अपनी कही | 

बहरहाल,एक बार फिर आप सबके बीच हाज़िर हूँ एक नयी पोस्ट लेकर जिसमे हम बात करेंगे एक ऐसी फ़िल्म की जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी कि वह तब थी जब बनी थी । यह एक ऐसी फिल्म है जो जितनी ईमानदारी से सवाल उठाती है उतने ही सशक्त ढंग से उनका जवाब भी देती है । यह एक ऐसी फिल्म है जो देखने वालों को झकझोर देती है और उन्हें कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है । यह वह फिल्म है जो शायद आप में से ज़्यादा लोगों ने देखी न हो या शायद नाम भी न सुना हो और अगर ऐसा है तो यह वो फ़िल्म है जिसका नाम आपको मरने से पहले देखी जाने वाली फिल्मों की फ़ेहरिस्त में शामिल कर लेना चाहिए ।

दोस्तों,उस फ़िल्म का नाम है 'गर्म हवा' जो सन 1973 में प्रदर्शित हुई थी और जिसके मुख्य कलाकार थे 'बलराज साहनी,फारूख शेख़,गीता सिद्धार्थ,जलाल आग़ा,ए.के हंगल,युनुस परवेज़,जमाल हाशमी' इत्यादि ।        




























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Thursday, May 31, 2012

# Vintage Articles & Phantom Promo.

Update(2nd June2012):Another video of Phantom promo has been added.

Reading articles and watching images from old vintage film magazines specially of 70's and 80's time period sometimes do fascinate me more than comics.Few days back while flipping through some vintage magazines i came across with these articles which i thought of sharing with all of you.


























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Sunday, May 6, 2012

# शहरी सभ्यता का आलोचक वेताल


दोस्तों इस पोस्ट के मेहमान लेखक हैं दिनेश श्रीनेत जो मीडिया में एक जाना-माना नाम है।  
गोरखपुर में जन्मे दिनेश कथाकार और पेशे से पत्रकार हैं। आजकल दैनिक 'अमर उजाला' में बतौर वरिष्ठ प्रबंधक कार्यरत हैं। इंद्रजाल कॉमिक्स से दिनेश को बचपन से लगाव रहा है और इंद्रजाल कॉमिक्स में प्रकाशित चुनिन्दा कहानियों पर दिनेश गाहे-बगाहे हम सब के साथ तब्सिरा करते रहते हैं और ऐसे ही एक तब्सरे का मरकज़ बनने का शर्फ़ आज कॉमिक वर्ल्ड को हासिल हुआ है जिसके लिए कॉमिक वर्ल्ड के पाठकों की तरफ से दिनेश जी को बहुत-बहुत धन्यवाद।  
गाज़ियाबाद में कार्यरत दिनेश श्रीनेत फिल्म विधा पर आधारित एक ब्लॉग भी लिखते हैं जिसका नाम है इंडियन बॉयस्कोप। 





























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Sunday, February 12, 2012

# चौथा पुत्र

दोस्तों,महाबली वेताल के जन्म-मास उत्सव को मनाते हुए हम आज एक और लोमहर्षक वेताल कथा पर बात करेंगे जो अपने-आप में कई कारणों से विशिष्ट हैं । यह एक ऐसी कथा है जिसमे कई वेताल मानकों और स्थापित परम्पराओं को तोड़ा गया है और मज़े की बात यह है की इन मानकों को किसी और ने नहीं बल्कि खुद ली-फ़ाल्क ने तोड़ा है और मुझे भरपूर शुबहा है कि इन तथ्यों कि तरफ़ शायद ही पहले किसी का ध्यान गया हो । 

क्या हैं वो वेताल परम्पराएं और क्या हैं वो मानक इन पर हम आगे तो बात करेंगे ही लेकिन उससे पहले बात करते हैं इस कहानी की अन्य विशेषताओं पर ।  वेताल-पुरखों के कारनामों पर आधारित कथाएँ हमेशा से सामान्य से अधिक रोमांचक और दिलचस्प हुआ करती हैं और यदि कथा खुद फ़ाल्क द्वारा लिखित हो तो फिर क्या कहने ! 

ऐसी ही एक सन्डे कथा है S-137,'The Fourth Son' या 'चौथा पुत्र' जो अख़बारों में नज़र आई थी 18 अगस्त 91 से लेकर 17 मई 1992 तक यानि की इंद्रजाल कॉमिक्स के दु:खद अवसान(1990) के उपरांत जिसकी वजह से यह कहानी इंद्रजाल कॉमिक्स के पन्नो की शोभा तो न बन सकी लेकिन डायमंड कॉमिक्स के डाईजेस्ट न.61/62 में अवश्य ही इसने अपनी सतरंगी छटा बिखेरी ।
























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Tuesday, February 7, 2012

# Review of the Phantom:'The Gold Key Years:Volume 1'

Friends its the month of February and we have just celebrated the 5th anniversary of Comic World few days back.The indents at my finger tips caused by rigorous and continuous typing for the anniversary post haven't been fully recovered and i am back with another post within a span of 3 days driven by some special cause.


All of you must be well aware of that Phantom's very first strip 'The Singh Brotherhood' appeared in newspapers on 17th Feb. 1936,hence February could be termed as Phantom's month and Comic World would be celebrating this month by posting different-different features/comics relating to Phantom in general.


To start with here is the review of 'The Gold Key years:Volume 1' published by Hermes Press Publication.You must be knowing that Hermes Press is the publication which has recently brought out the 3 volumes of Phantom Daily strips and planning to publish all Gold key,King,Charlton and Sundays too.


The 'Gold Key' was the publishing banner of K.K.Publications of US which published 17 comic books of Phantom based on Lee Falk original strips(except issue no.11,12 and 13) illustrated by Bill Lignate and script by Bill Haris(from issue no.1-10) and Bill Lignate(issue no.11-17) within the period spanning from Nov.1962 to July 1966.


In this series Hermes Press has published the first 8 stories of Gold Key in its 1st Volume followed by a 2nd volume consisting of remaining nine stories out of a total 17 Gold Key stories.



























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Saturday, February 4, 2012

# 5th Anniversary Post

Friends a warm welcome to all of you at this special occasion which is the 5th anniversary of this blog.A whole five years have been elapsed since Comic World came into existence on blogosphere with a motive behind to share and discuss the comics,specially Indrajal comics,with all of you. 


In 2007,debut year of the blog,a total of 87 posts were posted in a span of one year in which mostly were Indrajal comics and that too dual version of a single issue.After arrival of 2008 several other comic blogs came into existence too with a purpose of sharing Indrajal comics as a result the no. of posts reduced to 43 in its 2nd year.


The depletion of limited quota of 803 IJC at a quick rate made me think that what will be the future of blog after all IJC issues will be posted ! This concern made me to switch over to other non-IJC comics and my passion associated with comics in general made me to discuss/post more and more about comics,novels,magazine which added a variety and difference to this blog.The posting frequency,though,decreased but the colors and variations did certainly added. 


In the meantime i steered towards my other passion movies also which prompted me to prepare posts on movies like SHOLAY,talented but defunct directors and popular film magazines too which was appreciated by all of you.


Once moved away from mere comic posting it further disinterested me to post comic links only and i started looking upon any such opportunity which inspired me to discuss/share something meaningful along with comic links,thus trading of with the posting frequency.The no. of post per year reduced further but selectivity and variety increased accordingly.


Of late i discovered the opportunity of doing something that which i was longing from a long time,i.e.,discussing in detail about the comparative study between original Phantom strips and published Indian comic books over these strips such as Indrajal and Diamond comics.


These comparative analysis were also liked and quite appreciated by all of you to my satisfaction and served as a inspiring force behind another dream project of mine,i.e.,conversion of all non-Indrajal Phantom strips in Hindi,about which more i will discussing in coming paragraphs.


The blog which was initiated to revive and rekindle passion for Indrajal comics in particular ignited the passion for comics in general and morphed me into a avid comic collector of bygone comics beginning with Indrajal comics and followed by manoj chitra katha,
diamond,chitrbharti,kiran,star comics,amar chitra katha etc to name a few.
Days,months and years passed resulting in growing up of my collection which time to time i did displayed in several posts too.


During the 5 year journey of this blog it happened to interact with finest passionate comic collector/readers all over the world.In beginning the regular visitors were mainly the IJC lover and collectors like Ajay Misra,ICC,TPH,Chandan,Sagnik,Col.Worobu,Bala,Anurag Dixit etc to name a few,and when the focus shifted to comics,magazines and novels in general then avid comic readers like Kuldeep jain,Arun,Lalit,Vijat Kr.Sappatti,Anand emerged with their appreciative knowledge base and nostalgic writing skills.


One of the major achievement during this journey proved to be the mentioning of Comic World in Indian leading daily The Hindustan Times which highlighted and appreciated the different nature and quality of this blog.


Since then the journey is still ON despite of daily life hectic schedule and other priorities of life but missing certainly that much level of enthusiasm which was earlier,anyway lets see till when this journey could be continued through this blog.


So,after the preface lets begin this special anniversary post welcoming all of you by a comicoanalysis of a Indrajal comic which was the main inspiring force behind the formation of the blog.
This comic,'Dayalu Pret'(IJC No.321) is scanned,analysed and posted by a dear friend and fantastic comic lover cum collector Vishal Sharma in his unique posting style which is similar to a poet singing heroic ballads.
For his unmatched style of posting all credit for this comic along with a heartfelt thanks goes to him.   


"Dayalu Pret"(By Vishal sharma)



(Cover Courtesy : Zaheer Bhai)

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Sunday, January 1, 2012

# " जंगल से बुलावा "

दोस्तों,सबसे पहले इस ब्लॉग के सभी पाठकों को नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं | उसके बाद ख़ुशी की खबर यह है की इस वर्ष के प्रथम दिन ही एक नयी पोस्ट लेकर हाज़िर हुए हैं जनाब विशाल शर्मा जी अपने चिरपरिचित जोशीले अंदाज़ में जो पढ़ने वालों के दिल में खलबली मचा देता है | इनका प्रस्तुतीकरण ऐसा होता है जैसे कोई कवि वीर रस से सरोबार कोई कविता भरी महफ़िल में पेश कर रहा हो | 

यह कॉमिक वर्ल्ड के लिए सौभाग्य की बात है की अपनी कविता पेश करने के लिए इन्होने कॉमिक वर्ल्ड को चुना जिसके लिए इन्हें हार्दिक धन्यवाद् | 

तो दोस्तों मैं ज़्यादा देर तक आपके और इस कॉमिक के बीच नहीं आते हुए पेश करता हूँ विशाल शर्मा जी का नायब प्रस्तुतीकरण "जंगल से बुलावा" उन्ही के अंदाज़ में उन्ही की ज़बानी |

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Navdeep
Srinivas
Frank
Achala
Venkit