Monday, June 24, 2013

# The Sound Of Music

दोस्तों कहते हैं कि संगीत में भी एक नशा होता है जो सुनने वाले को बेसुध कर देता है । कहा तो इतना तक गया है कि कई-कई संगीतकार तो अपने संगीत से सम्मोहित कर लोगों को वश में कर लेते थे । 

'Pied Piper Of Hemlin' की कथा तो आप सबने पढ़ी/सुनी ही होगी जिसमे Hemlin शहर के निवासी अपने शहर के लातादाद(असंख्य) चूहों से छुटकारा पाने के लिए एक दक्ष बांसुरी वादक को बुलाते हैं जो अपनी बांसुरी की मीठी और मोहक तान पर चूहों को सम्मोहित कर उन्हें शहर से बाहर एक नदी में ले जाकर डुबो कर नगरवासियों को उनसे निजात दिलाता है ।
























बाद में अपना मेहनताना मांगने पर जब हेमलिन निवासी इस बांसुरी वादक को अंगूठा दिखा देते हैं तो क्षुब्ध होकर यह वादक पुन: बांसुरी बजाता है और सारे शहर के बच्चे उसकी बांसुरी की सम्मोहक धुन पर सम्मोहित होकर अपने-अपने घरों से निकल आते हैं और नाचते-गाते हुए वादक के पीछे चल पड़ते हैं जो शहर को निवासियों को अपनी बात से मुकरने का सबक सिखाने के लिए उनके बच्चों को हमेशा के लिए अपने साथ न जाने कहाँ ले जाता है ।  






इसके अलावा अगर अपने देसी संगीतकारों की बात की जाये तो हिंदुस्तान के मुगलकालीन शहंशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर के दरबार के नौरत्नों में से एक संगीत सम्राट तानसेन का नाम लिया जा सकता है जिनके संगीत में कहते है कि इतनी कुव्वत थी कि वे मेघ राग छेड़ कर वर्षा करा देते थे,दीप राग छेड़ कर दीपक की ज्योत को रोशन कर देते थे और जब वह तान छेड़ते थे तो उनके संगीत से मोहित होकर आस-पास के हिरन भी किसी मेमने की तरह उनकी तरफ़ खींचे चले आते थे ।  






कहते हैं कि एक बार एक युद्ध में घायल हुए अकबर के जिस्म में एक तीर की नोक टूट कर रह गयी थी जिसे शल्य-क्रिया कर निकाला जाना बेहद ज़रूरी था अथवा बादशाह की जान पर बन सकती थी लेकिन उस टूटी तीर की नोक से बादशाह को तकलीफ़ इस क़दर की थी जिससे कि उनपर कोई भी नशे की दवा काम नहीं कर रही थी और शाही वैध और ज़र्राह अपना काम नहीं कर पा रहे थे । तब तानसेन ने अकबर को एक ऐसी नशीली धुन सुनाई जिसे सुन कर बादशाह नशे में गाफ़िल होकर सुध-बुध खो बैठे और शाही हकीमों ने ऑपरेशन कर वह बेतरह परेशान करने वाली तीर की टूटी नोक बड़े आराम से अकबर को बिना कुछ पता लगे निकाल दी ।  

मेरे दोस्तों कहने का मतलब यह है कि संगीत की लहरियों में भी एक किस्म का नशा और सम्मोहन होता है जो सुनने वालों के होशो-हवास छीन कर उन्हें बेबस कर देता है बस ज़रूरत होती है ऐसा संगीत जानने वाले गुणी(या 'अवगुणी') मौसिकार(संगीतकार) की । और आज की हमारी इस बज़्मे-वेताल का मौज़ूं एक ऐसी ही कहानी है जिसमे संगीत की इस जादुई खसलत का ज़िक्र है जो हमारे नायक वेताल को भी बेबस कर देती है और उसकी मर्ज़ी के विरुद्ध उसे वह काम करने पर मजबूर कर देती है जो वह नहीं करना चाहता । 

साठ के दशक के आरम्भ में जब 'साय बैरी' ने फैंटम या वेताल की कहानियों में चित्रकार की गद्दी संभाली तब वे अपनी कला के चरम पर थे और उनकी ज़ोरदार कला और ली फ़ाल्क की कहानी कहने की अनूठी प्रतिभा के संगम से कुछ ऐसी क्लासिक कहानियों का जन्म हुआ तो वेताल के इतिहास में मील के पत्थर का दर्जा रखती है और मौजूदा कहानी-जिसपर हम बात करने वाले हैं-एक वैसी ही कहानी है । 
16 दिसम्बर 1963 से आरम्भ होकर 21 मार्च 1964 को ख़त्म हुई इस डेली कहानी न. 87 या दैनिक रूप से अख़बारों की शोभा बनी इस कहानी में वेताल का सामना एक ऐसे खलनायक से होता है जिसके पास हथियार के नाम पर न पिस्तौल थी,न तीर-कमान थी और न ही कोई तोप थी । अगर कुछ था तो बस एक नगाड़ा जिसे बजा कर वह लोगों को अपने वश में कर लेता था ।   

कहानी का आगाज़ होता है ड्रम या नगाड़े द्वारा पैदा की जाती आवाज़ का धुनों की महत्ता से जिसमे हमें बताया जाता है कि नगाड़ों का चलन लगभग सारे ही मुल्कों में है । 



















उसके बाद ज़िक्र किया जाता है डेंकाली के नज़दीक के एक छोटे से द्वीप टिम्पेनी का जहाँ नगाड़ा वादकों का समूह रहता था जो अपने नशीले नगाड़ा वादन से आसपास के द्वीपों के निवासियों को सम्मोहित कर टिम्पेनी पर आने को मजबूर कर देते थे जहाँ पहुँचने पर उन्हें लूटने के बाद बेच दिया जाता था । 











टिम्पेनी द्वीप के लुटेरों के गिरोह से तंग आकर आसपास के जंगल के निवासी एकजुट होकर अचानक टिम्पेनी पर आक्रमण कर वहां के सारे नगाड़ा वादकों को मार देते हैं और उनके जादुई नगाड़े जला देते हैं लेकिन इस हमले में एक नगाड़ा वादक अपने पुत्र और एक नगाड़े के साथ बच निकलता है जो बाद में एक बंद गुफ़ा में अपने पुत्र को जादुई नगाड़ा वादन की शिक्षा इस मकसद के साथ देता है कि उसका पुत्र एक दिन जंगल के लोगों से टिम्पेनी का बदला लेगा । 





  
नगाड़ा-वादन की जादुई शक्ति से लैस और मन में प्रतिशोध की भावना लिए टिम्पेनी गिरोह का एकमात्र बचा यह जवान पुत्र निकल पड़ता है जंगल के लोगो से अपनी जाति का बदला चुकाने । अपने नगाड़े की शक्ति जांचने के लिए वह नजदीकी क़स्बे के एक व्यापारी को अपनी धुन से सम्मोहित कर उसका सामान छीन लेता है । 












  
नगाड़े की शक्ति जांचने के बाद उसका हौंसला और बढ़ जाता है और वह वाम्बेसी कबीले को अपनी सम्मोहक धुनों से कब्ज़े में कर दूसरे कबीले ल्लोंगो पर हमला करने के लिए उकसाता है जिससे जंगल में कायम वेताल शांति भंग होती है और जिसकी खबर पाकर खुद वेताल चल पड़ता है इस मुआमले की जांच-पड़ताल करने जिसमे इस बार उसका सामना एक ऐसे खलनायक से होने वाला है जो शारीरिक शक्ति में उसके पासंग भी नहीं है लेकिन फिर भी उसपर भारी पड़ने वाला है । 

कहानी का सबसे रोमांचक और लोमहर्षक दृश्य घटित होता है उस दृश्य में जब नगाड़ा-वादक अपनी नशीली धुनों के जाल में वेताल को फांस लेता है । 



वह कुछ ऐसी मीठी और नशीली धुनें छेड़ता है जिन्हें सुन कर वेताल न चाहते हुए भी खुद को नाचने से रोक नहीं पाता है । 




             
धुन बज रही है,वेताल नाचता जाता है,वह थक गया है लेकिन अपने को रोक नहीं पा रहा है क्योंकि नगाड़ा वादक उसे और तेज़ नाचने पर मजबूर कर रहा है ......



















वेताल थक कर गिर गया । क्या किसी वेताल कहानी में पहले कभी आपने ऐसा पढ़ा है जिसमे खलनायक ने बिना हाथ लगाये वेताल को थक कर गिरने पर मजबूर कर दिया हो !! वेताल,जिसके सामने अच्छे-अच्छे ताक़तवर और कद्दावर खलनायक(जनरल तारा,लाल दाढ़ी वाला,बर्ट और न जाने कितने ही) पानी भर चुके हैं वह इस कहानी में एक पिद्दी से आदमी के सामने मजबूर है । 

वेताल थक कर नीचे गिर चुका है और टिम्पेनी का आखिरी नगाड़ा-वादक उसके सर पर नेज़ा(भाला) लेकर उसका खात्मा करने को तैयार है । 
























उसके बाद क्या होता है,कैसे वेताल की जान अपने जीवन के सबसे हैरतंगेज़ खलनायक से बचती है यह सब जानने के लिए आपको इस कहानी को पढ़ना होगा जिसे इंद्रजाल कॉमिक्स द्वारा 1970 में 'मृत्यु के नगाड़े' नामक शीर्षक के अंतर्गत प्रकाशित किया गया था और जिसे बाद में डायमण्ड कॉमिक्स द्वारा पहली बार डाइजेस्ट न. 7 के अंतर्गत प्रकाशित किया गया था । 





   















                                                                                                                                        (Hindi cover image courtsey:Ajay Misra)




1970 में जब इंद्रजाल कॉमिक्स द्वारा इस कहानी को प्रकाशित किया गया था तब इसका हिंदी अनुवाद कोई खास दर्जे का नहीं था जोकि महज़ अंग्रेज़ी शब्दों का ज्यूँ का त्यूं अनुवाद कर किया गया था लेकिन कालांतर में जब डायमंड कॉमिक्स द्वारा इस कहानी को डाइजेस्ट न. 7 में प्रकाशित किया गया तब इसका हिंदी अनुवाद बेहद उच्च श्रेणी का था जिसे पढ़ने पर कहानी का मज़ा दोगुना हो जाता है । डायमंड संस्करण में प्रकशित इस कहानी की एक और विशेषता यह भी है कि जहाँ इंद्रजाल में संपादित कहानी या यूँ कहें कि कटी-छंटी कहानी प्रकाशित की गयी थी वहीँ डायमंड संस्करण में पूर्ण कहानी बिना एक भी पैनल की कटौती किये गए प्रकाशित की गयी थी जोकि डायमंड संस्करण की विशेषता है जिसमे वेताल की सभी कहानियां बिना किसी काँट-छाँट के प्रकाशित की गयी थीं । 

चलिए अब चलते हैं इस कहानी की कुछ विशेषताओं पर जिनके चलते यह कहानी अपने आप में बेजोड़ वेताल कहानी है । वेताल का नृत्य अपने आप में एक दुर्लभ घटना है जो बहुत कम ही अवसरों पर घटित होती है । ली फ़ाल्क ने वेताल का चरित्र एक संजीदा एवं गंभीर किस्म का रखा है जिसमे वेताल को ख़ुशी मिलने पर नाचने-कूदने-हल्ला मचाने वाली जैसी 'हलकी' हरकतें करते हुए कभी नहीं दिखाया गया है । वेताल-नृत्य एक पारंपरिक घटना है या एक रस्म है जो किसी नए वेताल शिशु के जन्म लेने के अवसर पर ही मनायी जाती है जिसे वेताल तमाम बांदार बौने के साथ बच्चे के जन्म लेने की ख़ुशी में मनाता है और जिसके अलावा कभी भी वेताल को किसी दूसरी घटना पर नाचते हुए नहीं दिखाया गया है जो वेताल जैसे गंभीर और कृशकाय किरदार की पुख्तगी ही करती है ।  लेकिन इस कहानी में खलनायक वेताल के इसी किरदार की पुख्तगी पर चोट करता है,वह अपने नगाड़े के धुन पर वाम्बेसी वासियों के सामने वेताल को नाचने पर मजबूर करता है जो अपने आप में उस नगाड़ा वादक की उस समय की हैसियत में बरतरी करती है क्योंकि एक तरह से वेताल को अपने इशारों पर नचा कर नगाड़ा-वादक तमाम जंगल वासियों को अपनी ताक़त का परिचय देता है कि देखो कैसे जंगल का शासक महाबली वेताल उसके इशारों पर नाच रहा है । 

ज़रा देखिये तो सम्मोहक धुन के प्रभाव में अपनी मर्ज़ी के विरुद्ध नृत्य कर रहे वेताल की इस मुद्रा को ...क्या किसी अन्य वेताल कथा में फ़ाल्क ने गरिमामयी वेताल को इस प्रकार का 'नृत्य' करते हुए चित्रित किया है ! 


  


















इस कहानी के एक और दृश्य की बात करते हैं जब नगाड़ा-वादक का सामना पहली बार वेताल से होता है जिसमे वेताल के रौब से थर्राया हुआ और अपने नगाड़े की शक्ति के प्रति शंकित यह टिम्पेनी का वादक बजाय वेताल का सामना करने के उससे कन्नी काट कर बच निकलता है । 










ज़रा इस दृश्य के बीच वाले पैनल पर गौर फरमाइये जिसमे कैमरा कमर पर हाथ रखे वेताल और उसकी कमर पर लटकी पिस्तौलों के बीच से नगाड़ा-वादक की संशंकित आँखों पर फोकस किया गया है जो वेताल का सामना करने से बचने की जुगत बिठा रहा है । 


  























सच ! कितना प्रभावशाली और सटीक पैनल है जो उस दृश्य के तीनों पात्रों की मनोस्थिति एक साथ चित्रित करता है और जो फ़ाल्क की अद्वितीय कथा-कथन और निर्देशन क्षमता का सहज ही परिचय देता है । मेरे दोस्तों और भाईयों ली फ़ाल्क को ऐसे ही नहीं 'मास्टर क्राफ्ट्समैन' कहा जाता था । फ़ाल्क की कहानियों की ख़ास बात यह भी है कि वह कल्पित होते भी कल्पित नहीं लगती क्योंकि उनकी कहानियों में तर्कों का भी समुचित ध्यान रखा जाता था ।  

जैसा कि फ़ाल्क का अक्सर का शगल था कि वे बड़े प्रभावशाली खल-चरित्र सृजित करते थे और भविष्य में उनके पुनरुपयोग के लिए गुंजाईश भी बचा रखते थे जैसा कि उन्होंने में इस कहानी में भी किया है जिसमे टिम्पेनी का वह आखिरी बचा नगाड़ा-वादक मुखियाओं द्वारा सज़ा के लिए ले जाया जाता है । 



























हालाँकि यह बात दीगर है कि फ़ाल्क ने बहुत कम खलनायकों को ही दोहराया है जैसा कि वे इस चरित्र के साथ भी करते हैं क्योंकि टिम्पेनी का यह नगाड़ा-वादक या पीछे किसी गुफ़ा में रह रहा इसका पिता किसी भी अन्य फ़ाल्क कथा में दोबारा नज़र नहीं आया । 

अब और इस वेताल कथा के बारे में क्या कहूँ क्योंकि अल्फाज़ों के ज़रिये तो इसकी सभी खुसुसियतें बयान होने से रही जिन्हें सिर्फ़ पढ़कर ही जाना और महसूस किया जा सकता है । इसलिए मेरे दोस्तों और वेताल प्रेमियों ज़्यादा देर न करते हुए फ़ौरन से पेश्तर आप इस कहानी का लुत्फ़ उठाएं जिसके कि स्ट्रिप,इंद्रजाल और डायमंड तीनों प्रकाशनों के ही लिंक्स दिए जा रहे हैं । अगर आप अंग्रेज़ी में इस कहानी को पढ़ने में दिलचस्पी रखते हैं तो इसकी स्ट्रिप पढ़ें और अगर हिंदी में पढ़ना चाहते हैं तो डायमंड संस्करण ही पढ़ें जोकि इंद्रजाल कॉमिक्स संस्करण से हर दर्जे में बेहतर है । अंत में चलते-चलते मैं धन्यवाद देना चाहूँगा विशाल भाई को जिनकी प्रेरणा ने इस पोस्ट का जन्म होने देने में वही भूमिका निभाई है जो अँधेरे में पस्त पड़े हुए किसी पौधे को खिलने देने में सूरज की रौशनी निभाती है । 


Download Strip

18 comments:

Gaurav The Devil said...

Thanks a lot bro for all the three versions and best of all, your way of presenting things which is great. Thanks a ton bro and keep it up. Thanks to everyone else as well whoever is involved.

lapen said...

After long time reading Indrajaal Comics is very interesting. Thanks a lot.

VISHAL said...

वेताल कथाओं की दुनिया के "कथा सागर- कॉमिक भाई" , आपको फिर से वेताल की दुनिया में देखकर जो ख़ुशी मुझे हो रही है उसे शब्दों में बयाँ कर पाना कठिन है :) आपने मेरी फिर से डाली गयी दरखास्त की अर्जी को अंतत: कबूला !इसके लिए मैं आपका बेहद शुक्रगुजार हूँ
आपको लगातार फ़िल्मी पोस्ट करते देख मुझे लगने लगा था की अब आप शायद ही कभी कॉमिक्स की दुनिया की और रुख करोगे , अगर फिल्मों की बात की जाये तो फिल्मो का जादू आज भी बरक़रार है
आज की जनरेशन भी फिल्मों की दीवानी है , यह दीवानापन कल भी था , आज भी है और आगे भी रहेगा
मगर अफ़सोस, कॉमिक्स को देख वर्तमान पीढ़ी के पाठक ठीक ऐसे ही कन्नी काटते हैं जैसे टिम्पैनी का नगाडा वादक पहली बार वेताल को देख कर इधर उधर नजरें करता है
कॉमिक भाई हमारा लक्ष्य आज की 'टेबलेट' पीढ़ी को यह दिखलाना है की हम अपने समय में क्या पड़ते थे और वो किस अनमोल चीज से आज वंचित है , अपने समय की कालजयी कहानियों को ऐसे पेश करना की अगर आज की पीढ़ी इन पोस्ट को एक नजर देख ले तो बस विवश हो जाये डाउनलोड करके पड़ने को !
अगर टिम्पैनी का नगाड़ा वादक सभी को नाचने पर विवश कर देता है तो आप की पोस्ट भी विवश कर देती है पाठकों को पड़ने को !

फ़िल्मी पोस्ट का अपना एक आकर्षण है जैसे वक्त , शक्ति इत्यादि बहुत ही आला दर्जे की पोस्ट , लेकिन अगर हर पोस्ट ही फिल्मों से मुत्तालिक हो तो मुझे जैसे घोर कॉमिक्स प्रेमी को 'कॉमिक भाई ' का 'फ़िल्मी भाई ' वाला रूप हज्म सा नहीं होता ! बड़ी ही सीधी सी बात , आप 60 (कॉमिक्स) : 40 (फ़िल्मी) के अनुपात के हिसाब से भी चलें तो कोई आपति नहीं :)

पोस्ट पर चर्चा तो अभी शेष है .........

VISHAL said...

जब मैंने इस पोस्ट को पहले देखा( Continue Reading तक ) तो मुझे बांसुरी वादक की फोटो देख कर 'रुसी परी कहानियो' वाली मोटी मोती किताबों के अन्दर छपते चित्र जहन में ताज़ा हो गए , यह कहानियां भी एक से बढकर हैं ! तो मुझे लगा की यह कहीं कोई रुसी पारी कहानी से सम्बंधित तो नहीं ? फिर जैसे ही नजरें लेबल से टकराई तो 'वेताल' 'स्ट्रिप' और 'इंद्रजाल पडकर बांछें खिल गयी !
मेरी नजर में यह एक आविष्कारी पोस्ट है ! आप पोस्टिंग को लेकर नित्य नयें नयें प्रयोग करने में दक्ष हैं और आपकी इस प्रयोगशाला में से कुछ एक नुस्खे में भी सीख लेता हूँ :) आपने कहानी के केंद्र बिंदु यानि 'संगीत' को बखूभी उभारा है और फिर उसे मुख्य कहानी से बखूबी जोड़ा भी 'Pied Piper of Hemlin' की बेहद रोचक कहानी सुना कर और फिर संगीत सम्राट 'तानसेन' के सुर छोड़ कर ! तानसेन के मेघ राग के बारे में पहली बार सुन रहा हूँ !
जब आप वेताल कथा सुनाना शुरू करते हो तो हम सब भी ठीक ऐसे ही खींचे चले आते हैं जैसे Piper of Hemlin के पीछे बच्चों का रेला चला आ रहा है

वेताल की हर वो कथा जिसमें खलनायक वेताल पर भारी पड़ता है , अपने आप में ही बेमिसाल है ! लेकिन प्रस्तुत कहानी में तो वेताल की जान पर ही बन आई थी ! जरा नगाडा वादक के पिता का अत्मविश्स्वास तो देखिये जब वो अपने पुत्र से कहता है की "अब तुम मुर्दों को भी चला सकते हो " !!! अहाह ! ऐसे संवाद ही तो ताउम्र दिमाग में छप से जाते हैं !
कॉमिक भाई मैं जब भी कोई ऐसी जोरदार कहानी पड़ता हूँ तो थोडा मन ही मन बोल कर पड़ता हूँ जोश के साथ , और साथ में किसी एक्शन फिल्म का संगीत भी बजता है मन ही मन ! तब जा कर आता है ऐसी वेताल कथा पड़ने का आनंद ! कॉमिक भाई क्या आप भी ऐसे ही पड़ते हो किसी रोचक कहानी को ?
आपने वेताल की गर्जदार आवाज को महसूस किया जब वो पहली बार जंगल में नगाडा वादक को रुकने के लिए कहता है "ठहरो" ! इस दृश्य में वेताल का केवल हाथ और खोपड़ी नुमा अंगूठी ही दिखाई दे रही है ! वेताल के कमर पर रखे हाथ के अन्दर से लिया गया दृश्य जिसमे नगाड़ा वादक आंखे चुरा रहा है क्योंकि वो अपनी शक्ति को लेकर संशित है जिसे आपने बखूबी वर्णित किया है !
एक और दृश्य जिस पर मैं चर्चा करना चाहूँगा जब वेताल पन्ना नंबर 22 पर नगाड़ा वादक से मिलने पहुँचता है तो अँधेरे में वेताल के चेहरे पर फोकस ऐसे किया गया है जैसे कोई सिंह एक दम से सामने आ जाता है और नाच गाना एक दम से बंद ! चारों और सन्नाटा !
तब मुझे लगता है वेताल दुबले पतले नगाड़ा वादक को देख कर कुछ घमंड से अंगुली तान कर बोलता है "तुम मुझे मारना चाहते हो !!" तब नगाड़ा वादक का जवाब देने का कुटिल और रहस्मय तरीका बेहद शानदार लगा "मैंने ऐसा तो नहीं कहा " तब उसने अग्निपरीक्षा की घडी में धीरे धीरे नगाड़ा बजाना शुरू किया , और उसके बाद वो हुआ जो किसी और वेताल कथा में नहीं देखा , वेताल अपने घुटनों के बल नतमस्तक !!!
आपने कहानी का समापन बहुत ही रोचक मोड़ पर किया है

चर्चा जारी है ...








VISHAL said...

कॉमिक भाई , अब मैं इस कहानी के शीर्षक " THE SOUND OF MUSIC" पर कुछ कहना चाहता हूँ ! हर MUSIC में ही कोई न कोई SOUND है , मगर इस कहानी का जो MUSIC है उसकी साउंड में विनाशारी ताक़त है ! मगर शीर्षक को पड़ यह तो आबास होता है की इसमें संगीत है , लेकिन SOUND OF को पड़कर इस संगीत की प्रलयंकारी ताक़त का बिलकुल भी आबास नहीं होता . इस असहमति के लिए मुयाफी चाहूँगा और छोटा मुंह बड़ी बात , यहाँ पर SOUND की जगह पर या SOUND से पहले कोई ऐसा शब्द होना चाहिए था जिससे इसका शीर्षक इस कहानी के संगीत की ताक़त को खुद ब खुद बयाँ करता , कॉमिक भाई मुझे जैसा महसूस हुआ मैंने लिख दिया

और हाँ, चलते चलते मैं यह कहना चाहूँगा की आप अँधेरे में पस्त पड़े हुए पोधे नहीं हो बल्कि वो वट वृक्ष हो जिसकी घनी छाया तले हम सब पिछले कई वर्षों से आपसे ढेर सारी कथाएँ सुन चुके हैं और आगे भी सुनते रहेंगे ! यह वट वृक्ष यूँ ही फलता फूलता रहे

रकुल said...

First of all WELCOME BACK जहीर भाई...

Thanks for the comics... and thanks for your "AAMAD"

& Also Thanks to VISHAL... for your दरखास्त...

VISHAL said...

मोहतरमा रकुल , क्या बात है ! आपने तो टिप्पणियों तक को भी ध्यानपूर्वक पड़ लिया , बहुत खूब :)

Comic World said...

Thanks Gaurav Bhai.You are always welcome.

Comic World said...

Welcome Lapen Ji.

Comic World said...

शुक्रिया विशाल भाई । आप उन मित्रों में से हों जिनसे मुझे हमेशा कुछ बेहतर करने की प्रेरणा मिलती है जो मुझ जैसे आलसी जीव के लिए किसी उत्प्रेरक का सा काम करती है और जिसकी वजह से ही मैं कुछ उल्टा-सीधा सा लिख पाने में कामयाब हो पाता हूँ ।

जहाँ तक बात है फ़िल्मी पोस्ट्स में वक्तिया तौर से रमने की तो जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ कि हॉबीज़ या शौक़ ऐसे होते हैं जो समय के साथ ऊपर नीचे होते रहते हैं । जैसे किसी मेले में लगे बड़े चरखी वाले झूलें के हिंडोले ऊपर नीचे होते रहते हैं वैसे ही समय के साथ-साथ शौकों के हिंडोले भी ऊपर-नीचे होते रहते हैं । अगर आज एक हिंडोला ऊपर है तो इसका यह मतलब नहीं कि बाक़ी हिंडोले कभी ऊपर नहीं आएँगे । हाँ,थोड़ी देर भले ही हो सकती है । कॉमिक्स/किताबें और फ़िल्में यह कुछ ऐसे शौक़ हैं जिनसे मैं कभी भी दूर नहीं हो सकता हाँ किसी में थोड़ी ज़्यादा देर तक उलझा ज़रूर रह सकता हूँ ।

अब जहाँ तक बात है इस कॉमिक की तो इस कहानी ने मुझे हमेशा उद्देलित किया था क्योंकि यह कहानी मैंने पहली बार स्ट्रिप के तौर पर ही पढ़ी थी । साय बैरी ने जबसे फ़ाल्क का साथ पकड़ा उनकी शुरूआती कहानियां बेहद ही हृदयग्राही हैं जो आपको उसी रोमांच का अहसास कराती हैं जो फ़ाल्क और मूर की कहानियां कराती हैं लेकिन और भी प्रभावशाली चित्रों के साथ ।
वेताल या फैंटम एक ऐसा चरित्र है जिसकी फ़ाल्क लिखित कहानियां आप हमेशा उसी पहले जैसे रोमांच के साथ अनगिनत बार
पढ़ सकते हैं । आपकी तरह ही मुझे भी यह दुःख भरी ख़ुशी है कि ध्रुव और नागराज को चाहने वाली आज की पीढ़ी वेताल के बारे में न जान कर क्या मिस कर रही है और हम कितने भाग्यशाली हैं जो हमारी वेताल से वाकफियत हुई जिसे पढ़-पढ़ कर हम आजीवन लुत्फंदोज़ हो सकते हैं ।

इसके अलावा जहाँ तक इस पोस्ट के शीर्षक पर उठते आपके सवालिया निशान की बात है तो पहले मैं इसका शीर्षक Magic Of Music सोचा था लेकिन फिर बाद में सोचा कि जैसे 'शोर' संगीत का विकृत रूप है जो सुनने वालों को आनंद देने के बजाये परेशां ही करता,नुकसान ही पहुंचाता है वैसे ही इस कहानी में टिम्पेनी के वादक का संगीत भी सुनने वालों को अन्तत: परेशान ही करता है और नुकसान ही पहुंचाता है इसलिए मौजूदा शीर्षक ही ज़्यादा उपयुक्त प्रतीत हुआ ।

Comic World said...

Thanks and Welcome Rakul.

3d said...

Very well said.waiting for another story.

Comic World said...

धन्यवाद् 3d साहब लेकिन दूसरी कहानी का इंतज़ार करने से पहले अगर आपके तफ्सीली विचार और प्रतिक्रियाएं इस कहानी के बारे में मिल जायें तो क्या ही अच्छा हो ।

Vidyadhar said...

Bahot Bahot Dhanyavad

Unknown said...

थैंक्स ज़हीर भाई मज़ा आता हैं इस ब्लॉग पर पोस्ट को पढ कर और यदि पोस्ट फेंटम की हो तो हमारा मज़ा सौ गुना (जी हां केवल दो गुना नहीं वाकई में सौ गुना) बढ़ जाता हैं|
जब तक पोस्ट पे दी हुई राय ना पढ़ी पूरी|
तब तक पोस्ट पढ़ी अधूरी||
अर्से पहले (स्कूल टाइम में समर हॉलिडे में मैं डायमंड कॉमिक्स की फैक्ट्री में काम करता था| जब मैं कॉमिक्स के फर्मे (अख़बार जितना बड़ा पेपर) फोल्ड होने से लेकर कॉमिक्स सिलाई और कटिंग तक में फेंटम के चित्रों को देखता था तो एक नशा सा सर पे सवार हुआ रहता था मैं उन में खोया रहता था और उन चित्रों को घर पे जाकर पेपर पे या उन का पोस्टर न बना लूं तब तक दिन अधुरा सा रहता था)|
ज़हीर भाई आपने पुराने दिन याद दिला कर दिल के तार छेड़ दिए हैं
बहुत मज़ा हैं सच मे बहुत मज़ा हैं| फेंटम को पढ़कर ही उस की शख्सीयत को, उस के रौब को जाना जा सकता हैं|
फिर से थैंक्स
उमीद है जल्द ही अगली पोस्ट होगी मैं इंतजार में बैठा हूँ (वैसे ऐसी पोस्ट पढने को कयामत तक इंतजार कर सकता हूँ ही ही ही)

Comic World said...

Thanks Amit ji for your inputs.Kindly tell us more about the process of comic printing.

shobi said...

Sir,
I opened your site after many months. You are doing great job. Please keep this site alive. Its ok if you post whenever you get time even once in 1-2 or 3 months but please keep this alive.

p.panghal said...

Love this entire blog

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