दोस्तों,आज मैं आपसे उस घटना की चर्चा करने जा रहा हूँ जो कई वर्षों से मेरे ज़ेहन में खदबदा रही थी और जिसके पीछे की सच्चाई मैं हमेशा से ही जानने का इच्छुक रहा था । ....और वह घटना है तक़रीबन आज से तीस साल पहले 24 जुलाई 1982 के दिन फ़िल्म 'कुली' के सेट पर घटित हुई अमिताभ के साथ दुर्घटना जिसने अमिताभ को मौत के मुंह में पहुंचा दिया था जहाँ से उनका वापस आना किसी चमत्कार से कम नहीं था ।
फ़िल्म 'कुली' एक उस दृश्य की शूटिंग चल रही थी जिसमे गोगा कपूर एवं पुनीत इस्सर कुलियों का चिट फंड का पैसा समेट कर भाग रहे हैं और नीलू फुले दूसरे कुलियों के साथ आकर उन्हें रोकता है । लड़ाई शुरू हो जाती है और जब पुनीत इस्सर नीलू फुले का दूसरा हाथ भी काट देने को तत्पर होता है तभी अमिताभ की एंट्री होती है एवं अमिताभ और पुनीत के बीच वन टू वन फाइट शुरू हो जाती है । अमिताभ पुनीत को 4-5 मुक्के जड़ते हैं उसके बाद पुनीत अमिताभ को पकड़कर खंबे से टिकाकर उनके पेट में बायीं तरफ़ एक मुक्का जड़ता है और उन्हें खींच कर फिर मुंह पर एक मुक्का जड़ता है जिसके बाद अमिताभ पास पड़ी एक मेज़ पर कलाबाज़ी खाकर फ़र्श पर गिर जाते है ।
इसी दृश्य को फ़िल्माने के बाद अमिताभ पेट पकड़कर खड़े हुए और उन्हें पेट में दर्द की शिकायत हुई जिसके बाद जो हुआ वो इतिहास है । लेकिन इस पोस्ट का मकसद उस इतिहास पर चर्चा करना नहीं है बल्कि कुछ और है । दरअसल उस हादसे के बाद पत्र-पत्रिकाओं के ज़रिये हमेशा यही पढ़ने को मिला कि अमिताभ के पेट में चोट दरअसल उस दृश्य के दौरान मेज़ का नुकीला कोना लग जाने से लगी नाकि उस पुनीत इस्सर के घूँसे से जो मार्शल आर्ट्स का ज्ञाता था और ब्लैक बेल्ट धारक मार्शल आर्टिस्ट था । पत्रिकाओं के ही ज़रिये अमिताभ के भी साक्षात्कारों में हमेशा यही पढ़ने को मिला कि पुनीत इस्सर की कोई गलती नहीं थी और चोट मेज़ का कोना लगने से ही लगी । ज़रा पढ़िए 'माधुरी' पत्रिका के अक्टूबर 82' के अंक से लिया गया यह लेख जिसमे अमिताभ और पुनीत दोनों ही मेज़ के कोने को दोषी ठहरा रहे हैं ।
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फ़िल्म 'कुली' के निर्माता/निर्देशक मनमोहन देसाई ने उस दृश्य के मुतल्लिक किसी भी अटकलों को उभरने न देने के उद्देश्य से बाकायदा फ़िल्म में उस दृश्य-विशेष को फ्रीज़ कर दिखाया इस सूचना के साथ 'इसी शॉट में अमिताभ बच्चन को चोट लगी थी' । यह अपने-आप में पहली ऐसी घटना है जिसमे रील लाइफ में रियल लाइफ की घटना को इंगित किया गया है और जिसके लिए मनमोहन देसाई प्रशंसा के पात्र हैं ।
खैर,तो मेरा कहना दरअसल यह है कि अगर आप गौर से इस दृश्य को देखें तो आपको पता लगेगा कि पुनीत का मुक्का खाने के बाद जब अमिताभ मेज़ पर कलाबाज़ी खाते हैं तो वे मेज़ के किसी भी कोने से बहुत दूर हैं और उनके शरीर का कोई भी हिस्सा मेज़ के किसी भी कोने से नहीं टकराता ।
अब ज़रा उस शॉट पर नज़र डालिए जिसमे पुनीत अमिताभ के पेट में मुक्का जड़ने ही वाले हैं । मार्शल आर्ट्स के माहिर पुनीत का दायाँ हाथ किस तरह ऊपर उठा हुआ है जैसे कि जिस्म की सारी ताक़त को मुठ्ठी में समा लिया हो ।
और फिर जब पुनीत का मुक्का अमिताभ के पेट पर पड़ता है तो ज़रा अमिताभ के चेहरे के भावों पर गौर कीजिये । बिलकुल ऐसे दर्द के भाव जो तभी उभरते हैं जब वाक़ई किसी को अनजाने में कोई गहरी चोट लगे । इसके साथ-साथ ही पुनीत की कलाइयों की मांसपेशियों पर भी ज़रा गौर कीजिये जो बिलकुल तनी हुई हैं ठीक वैसी ही तब जब घूँसा पूरी ताक़त के साथ अपने निशाने पर जा लगने वाला हो ।
तो दोस्तों इस सब से यही ज़ाहिर होता है कि शॉट के दौरान पुनीत दृश्य की रौ में बह गए और ऐन वक़्त पर अपने मुक्के को अमिताभ के पेट से सुरक्षित दूरी पर रोक नहीं पाए जिसके फलस्वरूप वह हादसा हो गया जिसने उस वक़्त फ़िल्म इंडस्ट्री की जान सुखा दी थी । अब यह अमिताभ का बड़प्पन ही है जो उन्होंने हमेशा यही कहा कि पुनीत की कोई गलती नहीं है और चोट मेज़ का कोना लगने से ही लगी जबकि हम अभी देख के चुके हैं कि मेज़ का कोई भी कोना अमिताभ के जिस्म से कही से कही नहीं टकराता ।
यहाँ एक बात यह भी गौर-तलब है कि ऐसा नहीं है कि मनमोहन देसाई ने उस दृश्य की दोबारा शूटिंग की हो और मेज़ का कोना लगने वाला शॉट निकाल दिया हो क्योंकि अमिताभ के ठीक होकर दोबारा काम पर आने के बाद देसाई ने शूटिंग वही से शुरू की थी जहाँ से रुकी थी ।
तो दोस्तों इस पूरे हैरतंगेज़ वाक्ये से जहाँ एक तरह हम अमिताभ जैसे महानायक को लगभग खो चुकने की सिहरन से दो-चार होते हैं वही दूसरी ओर हमें अमिताभ के एक ऐसे अज़ीम मानवीय पहलु के भी दर्शन होते हैं जो जान-बूझ कर अपने साथी कलाकार की गलती ढाँपता है जिससे कि उसके कैरियर पर कोई आँच न आये ।
21 comments:
-zaheer bhai bahut accha obsevation hain ek kaafi parsidh durghatna ka.
-Kuch pehluon par meri soch ye hain ki
1-Film ke beech mein rok kar ye batlana ki "iss drisya mein amitabh bacchan ko chot lagi thi", iss ke peeche vyavasayik soch jyadha thi, banisbat manviya pehlu ke.
- Jab bhi hum log amitabh bacchan ke sampoorn entertainer ki babt karte hain to, isska kaafi kuch sreya Manmoham Desai ko hi jaata hain, AAA,Parvarish, Suhhag Naseeb jaisi filmon kaa nirmaan , nirdeshan kar
- Jab amitabh bacchan ko bombay se bangalore via road le jaaya gaya to mamnmohan desai ji khud ambulance ke aage gaari drive kar ke le gaye, ye sunischit katne ke liye aage ki road kaisi hain
- Main nahi samajtha ki kisi aur director ki picturon ne massess ko itna enjoy karaya ho, jitna ki Md ki filmon ne kiya.
सच यही है कि अमिताभ बच्चन को चोट पुनीत इस्सर के मुक्के से ही लगी थी.
शुक्रिया पराग भाई । मैं आपके अन्य सभी बिंदुओं से सहमत हूँ लेकिन दृश्य फ्रीज़ कर इंगित करने के पीछे किसी व्यावसायिक सोच की गंध से सहमत नहीं हूँ क्योंकि अमिताभ की दुर्घटना ने 'कुली' को पहले से ही इतना चर्चित कर रखा था जिसके चलते उसे और किसी किस्म के प्रचार की ज़रूरत नहीं थी । उक्त दृश्य को फ्रीज़ कर सूचना देने का मकसद सिर्फ उन लाखों-करोड़ों दर्शकों की अपार जिज्ञासाओं को शांत करना भर था जो सही ढंग से यह जानना चाहते थे कि दरहकीक़त उनके प्रिय सितारे अमिताभ को चोट किस दृश्य में और किस शॉट में लगी ।
जी निशांत जी,मैं आपसे सहमत हूँ ।
हाँ, पुनीत इस्सर ने भी अपने एक ताज़ा इंटरव्यू में कहा था कि वे इस घटना के कई साल बाद तक अमिताभ से नज़रें नहीं मिला सके. यह अमिताभ का बड़प्पन है कि उन्होंने कभी इस बात को ज़ाहिर नहीं किया कि चोट की असल वज़ह क्या थी.
कविवर बच्चन ने भी अपनी आत्मकथा के अंतिम खंड में "दशद्वार से सोपान तक" में भी यही लिखा है कि चोट मारधाड़ के दृश्य में लगी थी.
ज़हीर भाई इस दुर्घटना के दरम्यान हमरा कॉलेज में I.Sc.-IInd Yr.था। कॉमन रूम में यही चर्चा होती रहती थी। अमित जी का ये कहना की पुनीत के घूंसे से नहीं बल्कि मेज़ के कोने से चोट लगी थी, उसी समय अमित जी की महानता को समझ कर हम नतमस्तक हो गए थे। लेकिन हम में से किसी ने पुनीत को कतई नहीं कोसा। फिल्म को कई बार देखा गया, और कई बार इस दृश्य की बारीकी का मुआयना किया गया, और यह सच पाया गया की सचमुच में पुनीत अपने एक्शन को कण्ट्रोल नहीं कर सके थे। फिर दुर्घटना तो दुर्घटना ही है, कोई जानबूझ कर किया गया हमला नहीं था। इस फाइट सीन के कुछ ख़ास हिस्सों को, दर्शकों की जिज्ञासा जो उफान मार रही थी, को शांत करने के उद्देश्य से मनमोहन जी ने 'ख़ास' शॉट्स को फ्रीज़ कर दिखाया, जो निश्चय ही हमारी बेकाबू हो चुकी लालसा को शांत करने में सहायक सिद्ध हुई। लेकिन 'मेज़' और 'घूंसे' के फर्क का पता चल जाता है। 'मास' के गुस्से का शिकार पुनीत न बने, अतः अमित जी सहित स्वर्गीय मनमोहन देसाई जी का कथन सम्मानजनक है। आपका इस तथ्य को इतने सटीक तरीके से एक्सप्लेन करना बहुत अच्छा लगा। _श्रीकांत
Thanks Tiwari Ji.
जहीर भाई, बहुत अच्छा लिखा है और यह महीन बात जो काफी लोगों से छूट गयी होगी, आपने बहुत सलीके से सामने रख दी. धन्यवाद..
यह पोस्ट हुईं ज़हीर भाई आपके फ़िल्मी दुनिया में आपकी जानकारी की बारीक़ पकड़ के एक और सबूत का . .
अमिताभ जी के साथ जब ये दुर्घटना हुई थी पूरा देश मानो सहम सा गया था और गली मोहल्लो में बस इसी की चर्चा व्याप्त थी। टीवी तो उस समय था नहीं और फ़िल्मी पत्रिकाए पल पल की खबर देने का काम बखूबी से कर रही थी। कुली हिट क्यों हुई ये तो तबसरे का मुद्दा नहीं पर मैं खुद इस दृश्य को देखने के लिए बेताब था की किस सीन में ये दुर्घटना हुई। उसके बाद काफी फ़िल्मी पत्रिकाओ को पढ़ा पर ये आपके द्वारा प्रस्तुत ये पहलु कभी नज़र में नहीं आया की शॉट के दौरान पुनीत दृश्य की रौ में बह गए और ऐन वक़्त पर अपने मुक्के को अमिताभ के पेट से सुरक्षित दूरी पर रोक नहीं पाए जिसके फलस्वरूप वह हादसा हो गया। कुछ समय पहले पुनीत इस्सर के बारे में एक लेख पढ़ा था जिसमे पुनीत साहेब ने इसे दुर्घटना बताया और इसका भी जिक्र किया की इस घटना के बाद फिल्मो में काम ढूँढना उनके लिए कितना मुश्किल हो गया था, उन्हें दोषी मानते हुए अमिताभ के कुछ प्रशसंको ने तो उन्हें जान से मार डालने की धमकी भी दी थी। पर ये घटना पुनीत और अमिताभ के बीच किसी कड़वाहट का बायस बनी ये मैंने अब तक नहीं पढ़ा।
आप जानते ही हैं की फ़िल्मी पत्रिकाए किस तरह से मसाला छापती है उस तरह की गिरावट कम से कम इस दुर्घटना के समय तक काफी फ़िल्मी पत्रिका में नहीं थी।
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शुक्रिया दया भाई ।
जी कुलदीप भाई उस समय की फ़िल्म पत्रिकाएँ और अदाकारों के संबंधों में एक प्रकार की आत्मीयता एवं मधुरता हुआ करती थी नाकि आज के समय की तरह सिर्फ़ टीआरपी एवं मुनाफ़े की चिंता ।
आपकी टिप्पणी वापस आ गयी है निशांत जी ।
कॉमिक भाई , क्या यह भी सत्य है की अमिताभ जी के इस एक्सीडेंट के बाद उन्हें रेखा या प्रवीन बाबी में से किसी एक नें अपना खून दान दिया था अमित जी को , मैंने ऐसे किसी मैगजीन में पड़ा था , अब आप ही बतलाएं की यह सही है या अफवाह मात्र
और हाँ कॉमिक भाई , इस फिल्म की शायद शुरुयाती दृश्यों में जब शोमा आनंद पुलिस से बचकर भाग रही होती तो उसका पीछा जो इंस्पेक्टर कर रहा था , क्या आपने भी इस व्यक्ति को नोटिस किया है की इन्होने ना आने कितने ही ऐसे दो तीन मिनट के किरदार किये हैं सैंकड़ों फिल्मों में , वही बारीक से मूछ , पीछे को बाल , चकोर चेहरा , अगर आपको इसका चेहरा याद आ गया हो तो जरुर बतलाएं इस बारे में भी ! अरे याद आया इसमें तो हमारे दुबे साब भी थे !
आर्टिकल में पुनीत इस्सर का इंटरव्यू पड़कर कई नयी बातें पता लगी , पुनीत इस्सर कराते में इतने दक्ष हैं मुझे नहीं पता था , जैसे कान में लगी सिगरेट को बिना हाथ लगाये गिरा देना ....बहुत अच्छा आर्टिकल दिया है आपने कॉमिक भाई
Jaheer bhai mera manana hai ki ek mahan kalakaar apne kirdaar ko kuch yun aatamsaat karta hai ki dekhne wala sahaj hi ye sochne lagta hai ki wo sach me waisa hi hoga asal jindagi me bhi. Aaj mai ABP news me dekh raha tha ki kaise film bombay to goa me ek scene me amitaabh shatrughan ko sach me chotil kar dete hai. Bakol shatru "film me ek simple sa scene tha. Lekin amitaabh to amitabh hai. Wo scene me kuch aise ghus gae ki apne sir ki takkar mere sir pe maar di. Meri aakho ke aage andhera cha gya aur khonn bhi beh nikla." ye sochna nadaani hogi ki puneet ne jaanbhhoj kr amitabh ko ghayal kiya hoga.
Jagdeep singh ji Puneet doesn't hit Amitabh deliberately rather it was just a accident where Puneet got lost in the scene and failed to keep his punch within safe distance from Amitabh abdomen.
thanks for the scans. Enjoyed them thoroughly.
जहीर भाई आप का फिल्मों और पत्र पत्रिकाओं के प्रति लगाव क़ाबिले तारीफ है आप अपनी लेखन शैली से हमें कई दिलचस्प अनसुनी बातों और नये पहलुओं से रुबरु कराते हैं .इसके लिए आपको तहेदिल से शुक्रिया लेकिन आपसे एक प्यार भरी शिकायत इस बात की है कि आपकी ऐसी पोस्ट्स में अक्सर काफ़ी देर हो जाती है जब कि हम जैसे पाठक आपको और अधिक पढ़ने की चाहत रखते हैं इसलिए आपसे गुज़ारिश है कि रोज़ नहीं तो हफ्ते दस दिन में पोस्ट्स दिया कीजिए . आपके लेखों को पढ़ना एक सुखद अनुभव है.
बहुत शुक्रिया चिन्मय भाई इस हौंसला अफज़ाई के लिए । चिन्मय भाई मुझ जैसे छोटे-मोटे लेखक को लिखने के लिए प्रेरणा और प्रोत्साहन की ज़रुरत पड़ती है जो यदि आप लोगों की समय रहते समुचित कमेंट्स के ज़रिये पूरी होती रहे तो फ़िर क्या वजह है जो मैं लगातार आप लोगो के बीच हाज़िर न होऊं ।
ज़हीर भाई ये पोस्ट लेट पढ़ी पोस्ट लाजवाब है| कूली फिल्म भी बचपन में ही देखी थी पूरी कहानी याद नहीं, पर फिर भी आप ने जो विडियो अपलोड किया है उसे देख कर (हो सकता है की ये मेरा वहम ही हो) तो यही लगता हैं ये हादसा पुनीत जी से अनजाने में ही हुआ हैं पर एक चीज जो हमने देखी पता नहीं और लोग देख भी पाए की नहीं| हॉस्पिटल के डॉक्टरों का कहना यही था की “पुनीत जी के नाख़ून लोहे के तो नहीं हैं या फिर उन्होंने कोई नुकीली चीज या अंगूठी तो नहीं पहनी थी ऊँगली में”| पुनीत जी ने तो नहीं पर वो नुकीली चीज अमित जी ने पहनी हुई थी जी हाँ अमित जी ने जो बेल्ट पेट पर पहनी हुई थी पुनीत जी का मुक्का उस बैल्ट के कोने पर पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है विडियो में| हो सकता है की बैल्ट की बक्कल ने ही घूंसे की ताकत के साथ अमित जी के पेट में भीतर तक नुकसान पंहुचा दिया हो| और इस पुरे शॉट में अमित जी टेबल के ऊपर लुढ़कते हुए दूसरी तरफ पहुचते हैं न की टेबल से टकराए हैं, तो टेबल के कोने से तो चोट लगने का सवाल ही नहीं उठता ज़हीर भाई|
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